गृहस्थ आश्रम रूपी भट्टी में तपकर ही सच्ची भक्ति संभव
गृहस्थ आश्रम एक भट्टी है। इसमें प्रत्येक को तपना है। इस आश्रम रूपी भट्टी में तपे बिना सच्ची भक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है। कोठी गेट स्थित सनातन धर्म सभा में रविवार को श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कार्तिक कृष्ण गोस्वामी महाराज ने यह बात कही।
हापुड़। गृहस्थ आश्रम एक भट्टी है। इसमें प्रत्येक को तपना है। इस आश्रम रूपी भट्टी में तपे बिना सच्ची भक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती है। कोठी गेट स्थित सनातन धर्म सभा में रविवार को श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कार्तिक कृष्ण गोस्वामी महाराज ने यह बात कही।
उन्होंने कहा कि जीवन में सहज रहना चाहिए और समस्याओं से लड़ना नहीं बल्कि उनमें सहज हो जाना चाहिए। सहजता में ही सफलता निहित है। उन्होंने कहा कि संसार की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। उनका उपभोग अर्थात उन्हें भोगा नहीं जाता। संसार के प्राणी में वासना का वास होता है और इस वासना का अंत प्रभु की उपासना होता है, जबकि उपासना की प्रेरणा कोई सद्गुरु ही दे सकता है।
उन्होंने कहा कि भागवत कथा के श्रवण से प्राणी सद्मार्ग की ओर चलता है। भक्त के अंदर जब भावना जागृत होती है, तब प्रभु के आने में देरी नहीं होती। प्रभु तो भाव के भूखे हैं श्रद्धा भाव से समर्पित होकर उनकी उपासना करोगे तो वह अवश्य ही कृपा करेंगे।
उन्होंने कहा कि भागवत का उद्देश्य लौकिक कामनाओं का अंत करना और प्राणी को प्रभु साधना में लगाना है। संत चलते फिरते तीर्थ होते हैं जो संसार के प्राणियों को दिशा देने व उन्हें सद्मार्ग दिखाने आते हैं। भागवत को जीवन में अपनाने व उसके अनुसार स्वयं को ढालने से ही प्राणी अपना कल्याण कर सकता है।
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