हताश तपस्वी हिमालय की ओर
अविरल गंगा के लिए संकल्पित तपस्वी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद प्रो. जीडी अग्रवाल गुरुवार को हिमालय रवाना हो गए।
वाराणसी। अविरल गंगा के लिए संकल्पित तपस्वी स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद प्रो. जीडी अग्रवाल गुरुवार को हिमालय रवाना हो गए। राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के वैज्ञानिक सदस्य प्रो. बीड़ी त्रिपाठी की सर्वे रिपोर्ट दैनिक जागरण में पढ़ने के बाद वे इस कदर हताश हुए कि गंगा की मुख्यधाराओं का खुद स्थलीय निरीक्षण करने और उसके अनुरूप वहीं किसी स्थान पर तपस्या शुरू करने का निश्चय कर लिया। अपने इस निर्णय के तहत वह गुरुवार को भोर में काशी छोड़ अपने सेवक के साथ उत्तराखंड के लिए रवाना हो गए। श्रीविद्यामठ से मिली जानकारी के मुताबिक प्रो. त्रिपाठी की दैनिक जागरण में छपी गंगा की हालिया सर्वे रिपोर्ट और गंगा तपस्या के बाद भी गंगा की धारा पर प्रस्तावित बांधों की लंबी-चौड़ी श्रृंखला से वह काफी मर्माहत थे। बुधवार की सुबह से ही वह कठोर तपस्या की जिद पर अड़े थे। अविछिन्न गंगा सेवा अभियानम् के सार्वभौम संयोजक स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बताया कि शासन की चुप्पी, तपस्या में प्रशासन की दखलंदाजी और गंगा की दीन-मलिन स्थिति देख स्वामी सानंद काफी दिनों से द्रवित थे। बुधवार की रात में उन्होंने गंगा की गोद में जा कर पुन: जलत्याग तपस्या शुरू करने की इच्छा जताई। अभियानम् के लोगों की इच्छा थी कि वह काशी में रह कर गंगा अभियान को गति प्रदान करें लेकिन तपस्या शुरू होते ही प्रशासन द्वारा बल पूर्वक उठाने, ड्रिप लगाने और फोर्स फीडिंग कराने से वह काफी खिन्न थे। तपस्या के बाबत उन्होंने कई अधिवक्ताओं से परामर्श भी लिया था परन्तु संतोषजनक हल सामने न आने से उन्होंने किसी अज्ञात स्थान पर रह कर तपस्या करने का मन बना लिया। बीती रात अभियानम् के लोगों ने उन्हें काफी समझाया पर वह लगातार काशी छोड़ने की अपनी जिद पर अड़े रहे। उनका कहना था कि अभियानम् अपनी गति व राह पर है। उम्मीद है कि मां गंगा जल्द अविरल-निर्मल होंगी व अपने गौरव को प्राप्त करेंगी। चूंकि वह अभियानम् के भारत प्रमुख हैं लिहाजा उनकी भी जिम्मेदारी बनती है। ऐसे में उम्मीद को विश्वास में बदलने के लिए जरूरी है कि वह कठोर तप करें। हालांकि उनको मनाने का प्रयास देर रात तक चला। इजाजत न मिलने पर वह हठ पर उतर आए। इसे देख उन्हें जाने की इजाजत देनी पड़ी और वह भोर में अपने अनुचर के साथ काशी छोड़ हिमालय की ओर रवाना हो गए। उन्होंने यह भी बताया कि पहले वह गंगा की मुख्यधारा और उस पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित बांधों का अवलोकन करेंगे, फिर तपस्या व उसके स्थान का फैसला करेंगे।
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