मोह विष के समान
जो पुष्प खिलता है, वह मुरझाता भी है। जिसने जन्म लिया है, वो मरण को भी प्राप्त होगा। इस जीव ने स्व के तन से तो राग किया ही है, वरण दूसरों के शरीर में भी राग दृष्टि रखकर भव-भ्रमण का मूल साधन अर्थात कर्म का तीव्र बंध किया है।
आगरा। जो पुष्प खिलता है, वह मुरझाता भी है। जिसने जन्म लिया है, वो मरण को भी प्राप्त होगा। इस जीव ने स्व के तन से तो राग किया ही है, वरण दूसरों के शरीर में भी राग दृष्टि रखकर भव-भ्रमण का मूल साधन अर्थात कर्म का तीव्र बंध किया है। यह उद्गार विशुद्ध सागर ने छीपीटोला स्थित निर्मल सेवा सदन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि वस्तु व्यवस्था व्यवस्थित है। हम राग-द्वेष ही कर पाएंगे, इसके अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे। जिस देह पर तुम राग कर रहे हो, वही देह एक दिन राख हो जाएगी। जो जिस-जिस अंग- उपांग में राग करता है व उसी अंग-उपांग में जाकर जन्म लेता है। यह विचित्र महिमा है मोह राग की। मोह महा विष के समान है, जो जगत में नीच गति का हेतु है। मत करो मोह, मत करो राग।
इस दौरान श्री मंदिर कमेटी के महामंत्री प्रवीन, मणीन्द्र जैन, नरेश जैन, सुरेश, आनंद जैन, विवेक जैन, राहुल जैन आदि मौजूद रहे।
सुदामा चरित्र सुन भावविभोर हुए श्रोता-
आगरा व्यापार समिति के बैनर तले हरीचंद गर्ग और मीरा रानी गर्ग द्वारा आयोजित भागवताचार्य गोस्वामी भक्त अनिल ने सुदामा चरित्र, वृंदावन-महात्म्य, भागवतसार व कृष्ण-उद्वव के संवाद सुनाकर भक्त को भक्ति का रसपान कराया। उन्होंने कहा कि सुदामा दरिद्र नहीं बल्कि बड़े स्वाभिमानी थे। जब श्रीकृष्ण ने कहा कि मित्र मैं तुम्हें कुछ देना चाहता हूं, तो सुदामा ने कहा कि तू 56 भोग खाता है और मैं 56 दिन में एक बार खाता हूं। बता बड़ा कौन, तू मुझे क्या दे पाएगा। कथा के दौरान चंदन स्वामी जी ने भजन प्रस्तुत किए।
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