अस्तित्व की सीढि़यां कमजोर हो रहीं
चंबा के अस्तित्व से भी पहले बने चामुंडा माता मंदिर को अब 21वीं सदी में सरंक्षण की जरूरत है। वैसे तो ये मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसके संरक्षण की सारी जिम्मेदारी विभाग के पास ही है। लेकिन इसके बावजूद ऐतिहासिक धरोहर उस दर्जे को नहीं छू पा रही है, जहां उसे होना चाहिए था।
चंबा। चंबा के अस्तित्व से भी पहले बने चामुंडा माता मंदिर को अब 21वीं सदी में सरंक्षण की जरूरत है। वैसे तो ये मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है और इसके संरक्षण की सारी जिम्मेदारी विभाग के पास ही है। लेकिन इसके बावजूद ऐतिहासिक धरोहर उस दर्जे को नहीं छू पा रही है, जहां उसे होना चाहिए था। मंदिर में व्यवस्था के नाम पर अब कई सदियों के बाद सिर्फ एक हाईमास्क लाइट का प्रावधान होने जा रहा है। जबकि मंदिर तक पहुंचने के लिए बनी अनगिनत सीढि़यां लगातार बदहाल होती जा रही हैं। इन सीढि़यों को नशेडि़यों और आवारागर्दी करने वालों ने अपनी आरामगाह बना लिया है। हालांकि मंदिर में रोजाना सफाई होती है। लेकिन मंदिर की सीढि़यों पर कभी-कभार ही झाड़ू लगता है। चंबा शहर के अलावा बाहरी राज्यों से भी लोग माता चामुंडा के दर्शनों की खातिर मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर चंबा-झुमहार मार्ग पर स्थित होने की वजह से सीधे मंदिर परिसर तक गाड़ी के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। मंदिर की छत में हुई ऐतिहासिक काष्ठ कला भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। कला को बचाने या मंदिर में लगी लकड़ी को पालिश करने का प्रावधान नहीं हो पा रहा है। चंबा शहर के ठीक ऊपर बसे इस ऐतिहासिक मंदिर की स्थापना चंबा रियासत बनने से भी पहले हो चुकी थी। जिस समय राजा साहिल बर्मन ने चंबा रियासत की नींव रखी, चामुंडा देवी मंदिर उस समय भी पहाड़ी पर स्थित था। हालांकि बाद में चंबा रियासत के राजाओं ने अपने हिसाब से मंदिर में कुछ फेरबदल जरूर किए। लेकिन इसका मूर्त रूप अभी भी दसवीं शताब्दी के पहले का ही है।
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