कांटों के बिस्तर पर अमृत की बूंदें
मुझे लगता है कि बड़ी संख्या में लोगों का कुंभ में भाग लेने का कारण है विश्वास। यह कोई जुनून नहीं, श्रद्धा की शांत निश्चितता है। मैं आज तक इतनी शांत भीड़-भाड़ में नहीं रहा..
भारत में रहते हुए मुझे सालों बीत चुके हैं। इस दौरान मैंने कई भव्य नजारे देखे लेकिन महाकुंभ जैसी भव्यता और उत्कृष्टता मुझे कहीं नहीं दिखी। मैं दो बार कुंभ गया हूं। मैंने भारी भीड़ को इकट्ठा होते देखा है, लेकिन असंख्य लोगों की जो भीड़ मैंने इलाहाबाद के कुंभ के दौरान देखी, वह कहीं नहीं दिखी।
भारत के उत्तर में स्थित शहर इलाहाबाद में गंगा का धुंधला पानी यमुना के नीले पानी से मिलता है। इन दो कुंभ में मुझे भारतीय प्राचीन सभ्यता की सशक्त उपस्थिति का अहसास हुआ। जो भी व्यक्ति महाकुंभ का आनंद उठाना चाहता है उसे इस मेले के विभिन्न पहलुओं को समझना होगा। महाकुंभ वाकई एक महान पर्व है। कुछ लोगों के मुताबिक यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है लेकिन महाकुंभ का महत्व स्नान के अलावा दूसरे कारणों से भी है। महाकुंभ का सबसे अभूतपूर्व नजारा होता है भीड़ के बीच नागा साधुओं को नगाड़ों की ताल पर नाचते हुए देखना। ये साधु हवा में उछलते नदी की ओर स्नान करने के लिए बढ़ते हैं।
इस महाकुंभ में ऐसे भी साधु हैं, जो अद्भुत कार्य करते नजर आते हैं। मैंने एक साधु को देखा जिन्होंने लंबे वक्त से अपने हाथ खड़े कर रखे थे, जिसके कारण उसकी त्वचा सूख गई थी। उनके नाखून बढ़े हुए थे। एक दूसरे साधु एक पांव पर खड़े हुए थे। एक तीसरे साधु कांटों के बिस्तर पर लेटे थे।
कुंभ मेले के दौरान धार्मिक शिक्षा और उपदेश भी दिया जाता है, जो हिंदू परंपराओं और सहिष्णुता को प्रदर्शित करता है। इन उपदेशों में कुछ बातों में रूढि़वादिता नजर आई, कुछ बातों में काफी गहराई थी और कई बातों ने मुझे काफी आश्चर्यचकित किया। इसका कारण शायद यह है कि हिंदू धर्म विविधताओं से भरा है।
कुंभ के मेले के दौरान काफी कारोबार भी होता है। दोनों ही कुंभ का आयोजन बेहतरीन था। टेंट की मदद से एक बड़ा शहर खड़ा किया गया था। कई किलोमीटर लंबी सड़कें बनीं और पुलों का निर्माण हुआ। प्रशासन ने भक्तों के लिए खाना, पानी, सफाई और बिजली का प्रबंध किया था। पुलिसवाले लोगों से बहुत सभ्य तरीके से बात कर रहे थे, उन्हें गंगा नदी के किनारे ले जा रहे थे। वे उन्हें एक लाइन में खड़ा कर रहे थे ताकि नहाते वक्त सुरक्षा बरकरार रहे। ऐसी परिस्थितियों में-जिनमें कई देशों में बवाल मच जाएगा-भारतीय व्यवस्थित तरीके से व्यवहार कर रहे थे। वर्ष 1989 में कुंभ मेले के मुख्य स्नान दिवस पर मैं भक्तों के साथ प्रेस कैंप की ओर जा रहा था। अपने अनुभवों पर मैंने लिखा था, मैं आज तक इतनी शांत भीड़-भाड़ में नहीं रहा। यहां कोई उन्माद नहीं है, सिर्फ श्रद्धा की शांत निश्चितता है।
कुंभ मेले में विश्वास का मुख्य स्थान है। महाकुंभ हिंदू धर्म में भिन्नता और जोश का जबर्दस्त प्रदर्शन है। यह राजनीति, उपदेश और व्यापार का महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन कुंभ मेले में करोड़ों लोगों के आने का मुख्य कारण है, विश्वास, जिसके कारण वे इलाहाबाद में संगम की ओर खिंचे चले आते हैं!
[मार्क टुली: लेखक प्रख्यात पत्रकार हैं]
(सहयोग आभार-बीबीसी)
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