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मां भक्तों को अनहोनी से बचाता है यह चाबुक!

नवरात्र में लोहे के चाबुक लेकर नगरकोट धाम बज्रेश्वरी देवी के दर्शन के लिए आने की परंपरा अभी भी कायम है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों से पीले वस्त्र में आने वाले श्रद्धालु ऐसे हैं जो अपने साथ लोहे के चाबुक लाते हैं और मां के दर्शन के साथ चाबुक को भी माता के समक्ष रख पूजा करवाते हैं।

By Edited By: Published: Fri, 19 Apr 2013 03:45 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2013 03:45 PM (IST)
मां भक्तों को अनहोनी से बचाता है यह चाबुक!

कांगड़ा। नवरात्र में लोहे के चाबुक लेकर नगरकोट धाम बज्रेश्वरी देवी के दर्शन के लिए आने की परंपरा अभी भी कायम है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों से पीले वस्त्र में आने वाले श्रद्धालु ऐसे हैं जो अपने साथ लोहे के चाबुक लाते हैं और मां के दर्शन के साथ चाबुक को भी माता के समक्ष रख पूजा करवाते हैं।

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हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, लेकिन मां के भक्तों का तर्क है कि चाबुक से उनके गांव में कोई अनहोनी नहीं होती, वहीं भूत-प्रेत से भी लोगों की रक्षा करता है। नवरात्र के दौरान लोहे के चाबुक लेकर उत्तर प्रदेश के सैकड़ों श्रद्धालु आए और मां का आशीर्वाद लेकर लोहे के चाबुक की पूजा-अर्चना करवा गांव लौट गए। उत्तर प्रदेश के जिला गौतम बुद्धनगर के रूपरा गांव से 65 वर्षीय मदन लाल ने परिवार के साथ मंदिर में माथा टेका, वहीं लोहे के चाबुक की पूजा भी करवाई। मदन लाल 27 वर्ष से लगातार मां के मंदिर में परिजनों सहित आ रहे हैं। पूर्वजों से मिले लोहे के चाबुक की वह मंदिर में पूजा करवाते हैं। उनके अनुसार यह चाबुक मां के आशीर्वाद के समान है, जिसे वह अपने घर के पूजनीय स्थल पर रखते हैं। वह इससे परिवार को अनहोनी से बचाते हैं, वही गांव के लोगों की भी इसी चाबुक से रक्षा करते हैं। वह जब भी मां के दरबार में आते हैं तो इसे साथ ही लाते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के खूर्जा से आए राम प्रकाश ने लोहे के चाबुक की पूजा करवाई और परिवार सहित माथा टेका। राम प्रकाश परिजनों सहित 24 वर्ष से लगातार मां का आशीर्वाद लेने आ रहे हैं। मंदिर के वरिष्ठ पुजारी राम प्रसाद ने बताया कि उत्तर प्रदेश के कई श्रद्धालु लोहे के चाबुक साथ लाते हैं, जो अति प्राचीन परंपरा है। लोहे के चाबुक लेकर चलने वाले पीले वस्त्र वाले श्रद्धालु घर से नंगे पांव चलते हैं, वही रास्ते में अपने हाथ से बना खाना ही खाते हैं।

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