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जनमानस के प्रणेता तुलसी

गोस्वामी तुलसीदास ने न केवल हिंदू समाज को आदर्श जीवन दर्शन दिया बल्कि हिंदी साहित्य रचना की नई परंपरा की शुरूआत की है।

By Edited By: Published: Wed, 25 Jul 2012 12:22 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jul 2012 12:22 PM (IST)
जनमानस के प्रणेता तुलसी

इलाहाबाद। गोस्वामी तुलसीदास ने न केवल हिंदू समाज को आदर्श जीवन दर्शन दिया बल्कि हिंदी साहित्य रचना की नई परंपरा की शुरूआत की है। वह अच्छाई की बुराई पर जीत के मिथक को स्थापित करने वाले रचयिता हैं। बाबा रामचंद्र ने तुलसी साहित्य को गुलामी से मुक्ति के बिगुल के रूप में सफल प्रयोग किया। दुनियाभर के हिंदू धर्मावलंबी मानते हैं कि आज के कलियुग की स्थिति का वर्णन रामचरितमानस के उत्तरकांड में ही कर दिया। साहित्यकारों के नजरिए से तुलसी भारतीय जनमानस में रच बस जाने वाली रचनाओं के प्रणेता थे।

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तुलसीदास और प्रयाग-

धार्मिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रहे प्रयाग के जिक्त्र के बगैर तुलसी साहित्य अधूरा है। प्रयागराज केभरद्वाज मुनि के आश्रम में दस हजार छात्र रामकथा का वाचन करते थे। उस समय यह दुनिया का सबसे बड़ा विश्‌र्र्वविद्यालय था। बालकांड में तुलसीदास प्रयागराज की महिमा का वर्णन किया है।

को कहि सकहि प्रयाग प्रभाउ।

कलुष पुंज कुंजर मृग राउ।।

भरद्वाज मुनि अबहूं बसहिं प्रयागा।

किन्ही राम पद अति अनुरागा।।

याज्ञवल्क्य मुनि परम विवेकी।

भरद्वाज मुनि रखहि पद टेकी।।

देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।

सागर मंज्जई सकल त्रिवेनी।।

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