शास्त्रार्थ में भी उठा राम मंदिर का विवाद
महाकुंभ में शुक्रवार को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिविर में विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ हुआ। वेदांत, न्याय, व्याकरण और साहित्य के उन्नयन विस्तार पर विद्वानों के बीच वाक्यों का पराक्रम देर तक चला।
कुंभ नगर। महाकुंभ में शुक्रवार को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शिविर में विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ हुआ। वेदांत, न्याय, व्याकरण और साहित्य के उन्नयन विस्तार पर विद्वानों के बीच वाक्यों का पराक्रम देर तक चला। दो शंकराचार्यो के बीच अयोध्या में राम मंदिर विवाद को लेकर सवाल उठा और उसका निराकरण भी कर दिया गया। शास्त्रार्थ के दौरान उठे तो कई सवाल, मगर प्रथम चक्र में काशी में शास्त्रों की रक्षा को लेकर उठे सवालों ने विषय को विस्तार दे दिया। सवाल था काशी में किस तरह की जा रही है शास्त्रों की रक्षा और शास्त्र पढ़ाने की क्या पद्धति है? इसका जवाब काशी विद्वत परिषद के मंत्री डॉ. रमाकांत पांडेय ने दिया। सवाल यह भी उठा कि धर्माचार्यो और काशी के विद्वानों ने राष्ट्र के उन्नति और शास्त्रों के संरक्षण में क्या भूमिका निभायी? इस पर काशी विद्वत परिषद के विद्वानों ने अपना-अपना पक्ष रखा। शास्त्रार्थ में उस समय रोचक मोड़ आ गया जब शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने शास्त्रार्थ परंपरा की रहस्य के परतों को खोलना शुरू किया, बताया कि किस तरह करपात्री जी शास्त्रार्थ कराते थे।
कांची कामकोटि पीठाधीश्वर स्वामी जयेन्द्र सरस्वती से शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने सवाल किया कि अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनना चाहिए या आदर्श राम का? इस पर स्वामी जयेंन्द्र सरस्वती ने कहा कि अयोध्या में राम का मंदिर चारों पीठों के शंकराचार्यो की आपसी सहमति से बनना चाहिए।
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