महेंद्र के चने के मुरीद हैं धौनी
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी जब अपने गृह नगर रांची आते हैं तो वह दिउड़ी मंदिर जाना कभी नहीं भूलते, यह तो जगजाहिर है। परंतु यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि धोनी जब भी यहां आते हैं तो वह महेंद्र वर्मा के ठेले के चने का भी आनंद लेना नहीं भूलते।
रांची। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी जब अपने गृह नगर रांची आते हैं तो वह दिउड़ी मंदिर जाना कभी नहीं भूलते, यह तो जगजाहिर है। परंतु यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि धोनी जब भी यहां आते हैं तो वह महेंद्र वर्मा के ठेले के चने का भी आनंद लेना नहीं भूलते।
ऐसा नहीं है कि केवल धौनी को ही उनके हमनाम महेंद्र चना खिलाते हों, बल्कि पिछले 40 वर्षो से सभी खिलाड़ी महेंद्र के ठेले तक पहुंचकर उनके चने का जमकर लुत्फ उठाते रहे हैं। महेंद्र भी रांची में होने वाली सभी क्रिकेट प्रतियोगिताओं के समय मैदान के बाहर अपना ठेला लगाना नहीं भूलते। उन्हें भी खिलाडि़यों को चने खिलाने और पानी पिलाने में आनंद मिलता है।
झारखंड के चतरा जिले के रहने वाले महेंद्र ने बताया कि वह रांची पढ़ाई करने के लिए आए थे और इसी दौरान वे क्रिकेट के मैदान में भी क्रिकेट देखने आते थे। क्रिकेट में उनकी दिलचस्पी इतनी बढ़ गई की वह कोई भी मैच देखना नहीं भूलते थे। इस क्रम में वे मैदान पर अपने खाने के लिए चना भी लेकर पहुंचने लगे और उसे ही खाकर मैच का आनंइ लेने लगे। महेंद्र उम्र बढ़ने के बाइ रोजगार तलाशने लगे। एक दिन क्रिकेट को ही उन्होंने रोजगार बनाने को सोचा और फिर वह क्रिकेट मैचों के दौरान ठेला लगाने लगे।
वह कहते हैं कि धौनी उनके चना के मुरीद हैं। उन्होंने बताया कि प्रारंभ से ही धैानी क्रिकेट की गेंद पर जोरदार प्रहार करते रहे हैं। धौनी की रांची में खेली गई कई दमदार पारी की याद आज भी उनके जेहन में ताजा है। महेंद्र 40 वर्ष से क्रिकेट खिलाडि़यों के नाश्ते और पानी का ख्याल रखते आ रहे हैं। बरसात का मौसम हो या गर्मी की तेज धूप, रांची के मोराहबादी खेल मैदान और मेकन स्टेडियम सहित कई मैदानों में क्रिकेट प्रतियोगिता के मौके पर महेंद्र का ठेला आपको मिल जाएगा। बकौल महेंद्र,धौनी अब भी जब रांची आते हैं तो वह चने खाना नहीं भूलते।
रांची जिला क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी शरतचंद्र का कहना है कि अगर महेंद्र अपना ठेला दूसरे स्थान पर लगाएं तो उनकी कमाई ज्यादा होगी क्योंकि खेल के मैदान में केवल खिलाड़ी और अम्पायर ही उनका चना खाते हैं, दर्शक तो इधर-उधर जाकर खा लेते हैं। वह कहते हैं कि क्रिकेट के प्रति समर्पण ने ही महेंद्र को क्रिकेट मैदान तक ही सीमित कर दिया है।
बकौल महेंद्र खिलाडि़यों की सेवा करने से उन्हें जो संतुष्टि मिलती है किसी और काम में उन्हें नहीं मिलती। वे कहते हैं कि वह कभी भी खिलाडि़यों से पैसे की भी मांग नहीं करते, खिलाड़ी जो पैसा दे देते हैं उसे वे खुशी से रख लेते हैं। महेंद्र के क्रिकेट के प्रति इस जुनून को झारखंड क्रिकेट संघ भी सलाम करता है। रांची जिला क्रिकेट संघ के सचिव सुनील कुमार सिंह कहते है कि रांची जिला क्रिकेट संघ के 50 वर्ष पूरा होने के अवसर पर संघ ने महेंद्र को सम्मानित करने की भी योजना बनाई है। बकौल सुनील, अब सुविधा बढ़ गई है परंतु जब सुविधा नहीं भी थी तब भी महेंद्र ने अपने व्यापार को क्रिकेट मैदान तक ही सीमित रखा जो उनके क्रिकेट के प्रति समर्पण की भाव को दर्शाता है।
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