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क्या होगा महान त्रिमूर्ति के बाद

भले ही वो फिलहाल कुछ बड़ा ना कर पा रहे हों लेकिन भारत की महान त्रिमूर्ति [सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण] जब टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहेगी तो फिलहाल लगता नहीं कि कोई उनकी जगह की अच्छी तरह से भरपाई कर पाने में सक्षम है।

By Edited By: Published: Sun, 08 Jan 2012 04:37 PM (IST)Updated: Sun, 08 Jan 2012 04:37 PM (IST)
क्या होगा महान त्रिमूर्ति के बाद

पर्थ। भले ही वो फिलहाल कुछ बड़ा ना कर पा रहे हों लेकिन भारत की महान त्रिमूर्ति [सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण] जब टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहेगी तो फिलहाल लगता नहीं कि कोई उनकी जगह की अच्छी तरह से भरपाई कर पाने में सक्षम है।

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पहले सुरेश रैना और अब विराट कोहली ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को निराश किया। रोहित शर्मा को अब अगले सप्ताह मौका मिल सकता है और वह नए खिलाडि़यों में अविश्वास को गलत ठहराने की कोशिश करेंगे। इन युवा खिलाडि़यों को तैयार होने के लिए पर्याप्त मौका दिया गया। उन्होंने टेस्ट कैप पहनने से पहले काफी एकदिवसीय मैच खेले लेकिन तब भी वे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। रैना ने पहला टेस्ट मैच खेलने से पहले 98 एकदिवसीय मैच खेले। उन्होंने अब तक 15 टेस्ट खेले हैं जिनमें वह 29.58 की औसत से 710 रन ही बना पाए हैं। वहींकोहली को 59 वनडे खेलने के बाद टेस्ट खेलने का मौका मिला लेकिन वह 6 मैच में 21.27 की औसत से 234 रन ही बना पाए हैं। रोहित भी अभी तक 72 एकदिवसीय मैच खेल चुके हैं। उनकी असफलता का कारण तेज और उछाल वाली गेंदों पर बैकफुट पर जाकर नहीं खेल पाना रहा है। उपमहाद्वीप की सपाट पिचों पर फ्रंट फुट पर जाकर शाट मारना आसान होता है। विदेशी पिचों पर घुटने की ऊंचाई से अधिक की उछाल होती है और उनके पास समानान्तर शाट खेलने के लिए तकनीकी दक्षता नहीं है। इसका परिणाम है कि वे असफल हो रहे हैं। अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि ट्वेंटी-20 और एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में लगातार हिटिंग करने से वे टेस्ट क्रिकेट की असली परीक्षा में खरे नहीं उतर पा रहे हैं।

पूर्व भारतीय दिग्गज सुनील गावस्कर का मानना है कि इससे युवा बल्लेबाजों के बल्ले की तेजी बढ़ गई है और वे उस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं कि गेंद बल्ले पर आए और वह उसे हल्के हाथों से खेले। भारतीय परिस्थितियां भी बल्लेबाजों के विकास के अनुकूल नहीं हैं। रणजी ट्राफी की पिचें निर्जीव होती हैं। इसके अलावा 80 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्वदेश में खेला जाता है तथा काफी एकदिवसीय मैच खेल जा रहे हैं। इसके साथ ही आईपीएल भी खेला जा रहा है। जो भी कोच हैं वे युवा खिलाडि़यों को यह नहीं बताते कि उन्हें अपनी तकनीक सुधारने के लिए गेंदों को रक्षात्मक तरीके से खेलकर रोकना है। कोई भी जल्द से जल्द पैसा जुटाना और नाम कमाना चाहता है। पूर्व भारतीय बल्लेबाज संजय मांजरेकर ने बताया कि जब वह नेट्स पर हवा में शाट खेलने का प्रयास करते थे तो उनकी कलाई पर चोट पड़ जाती थी। कोच भी मानते हैं कि भारतीय पिचों पर ऐसे शाट खेले जा सकते हैं लेकिन उछाल वाली पिचों पर ऐसा संभव नहीं है।

कुछ पूर्व भारतीय बल्लेबाजों ने भी बताया कि किस तरह से उन्हें लाफ्टेड शाट खेलने पर बल्ला सिर के ऊपर उठाकर पूरे मैदान का चक्कर लगाने की सजा दी जाती थी। आस्ट्रेलिया के वर्तमान कप्तान और सिडनी में तिहरा शतक जड़ने वाले माइकल क्लार्क अच्छे उदाहरण हैं। क्लार्क ने कहा कि उन्होंने आईपीएल और ट्वेंटी-20 बिग बैश में खेलने से इंकार इसलिए किया क्योंकि वह अच्छा बल्लेबाज बनना चाहते थे। क्लार्क ने कहा, मैंने ट्वेंटी-20 को छोड़कर तथा वनडे और टेस्ट मैचों पर ध्यान केंद्रित करके अच्छा फैसला किया। मुझे लगता है कि मैंने अपने खेल में सुधार किया और वैसा खिलाड़ी बना जैसा कि मैं संभवत: बन सकता था।

यह टीम इंडिया के भविष्य के लिए एक बड़ा सवाल है कि क्या दिग्गज खिलाडि़यों की छत्रछाया में ही उन्हें आगे की नींव रखनी है या यह सोचना है कि उनके मौजूदा तीन महान खिलाडि़यों के बगैर भी वो विदेशी टीमों को अपने और उनके,दोनों के घर में हराने की क्षमता रखते हैं। जाहिर तौर पर आज टीम इंडिया के पास एक ड्रीम बैटिंग आर्डर है लेकिन अब लगातार 6 टेस्ट मैचों में हार के बाद भविष्य के सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण जल्द ढूंढने का अलार्म बज चुका है।

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