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प्रेम का उत्कर्ष

प्रेम जीवन का एकमात्र सूत्र है, इस तक पहुंचने के लिए मन से भय के पत्थर को हटाना होगा। प्रेम का उत्कर्ष ही व्यक्ति को परमात्मा तक पहुंचाता है। ओशो का चिंतन..

By Edited By: Published: Sat, 13 Oct 2012 11:56 AM (IST)Updated: Sat, 13 Oct 2012 11:56 AM (IST)
प्रेम का उत्कर्ष

दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं- आस्तिक और नास्तिक। आस्तिक मैं उनको कहता हूं, जिनकी जीवनचर्या प्रमाण देती है कि वे आस्तिक हैं।?जिनकी जीवनचर्या ही उनकी श्रद्धा का सूचक है।?इसलिए मेरा जोर जानने पर है, मानने पर नहीं। तुम भगवान पर इतना कम भरोसा करते हो, इसलिए मान लेते हो। क्योंकि तुम जानते हो कि अगर जानने गए तो शायद मिले न मिले, मान ही लो। तुम्हें बहुत भरोसा भी नहीं है।

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मैं तुमसे कहता हूं कि जानो, क्योंकि डर की कोई बात नहीं है।?परमात्मा है। वह तुम्हारे जानने से मिट नहीं जाएगा और तुम्हारे मानने से अगर नहीं होगा, तो हो नहीं जाएगा। जो नहीं है, वह नहीं होगा, तुम कितना भी मानो। और जो है, रहेगा। न मानो, तब भी रहेगा।?मानो तब भी रहेगा। तुम्हारे जानने-मानने से कोई अंतर नहीं पड़ता अस्तित्व में। परमात्मा है।

इसलिए मैं तुम्हें कमजोर नहीं बनाता और तुम्हें भयभीत नहीं करता। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि अगर तुमने विश्वास खोया तो तुम भटक जाओगे।?नहीं, मैं तुमसे कहता हूं, विश्वास के कारण तुम भटके हो।

एक घटना मैंने सुनी है। अमेरिका में तत्कालीन राष्ट्रपति कैनेडी के भाई की हत्या हो गई। सिरहान नाम के आदमी ने हत्या की थी। पूरे अमेरिका में यही पूछा जा रहा था कि हत्या क्यों की गई? कोई कारण नहीं दिखाई पड़ रहा था।?सिरहान का पिता इजराइल में रहता था। पत्रकार वहां भी पहुंच गए।?उन्होंने सिरहान के पिता से पूछा, तुम तो अपने बेटे को भली-भांति जानते होगे, यह हत्या क्यों की गई?

सिरहान के पिता ने कहा - मुझे कुछ पता नहीं है। मैं तो खुद विभ्रम में पड़ गया हूं। मैंने तो अपने हर बच्चे को ईश्वर से डरना सिखाया था, मेरा छोटा बेटा ऐसा कैसे कर बैठा?

अगर तुम मुझसे पूछो तो ईश्वर का डर सिखाना ही असल में उपद्रव की जड़ है। भय और ईश्वर, इसी में मनुष्य जाति के सारे पाप छिपे हैं।

भय किसी का भी हो, मनुष्य को विकृत करता है। वह विकसित होने नहीं देता।?आकाश में बैठे किसी परमात्मा का भय तुम्हें संकुचित करता है, गुलाम बनाता है। तुम्हें अपना मालिक बनने नहीं देता। जिससे तुम भय करते हो, उससे कभी प्रेम कर ही न पाओगे। भय से तो कभी प्रेम नहीं होता। जब तुम भय सिखाते हो, तो तुमने अनजाने में घृणा सिखा दी। तुमने अनजाने में हिंसा सिखा दी। प्रेम सिखाओ, भय मत सिखाओ।

तुम सभी को भय सिखाया गया है। भय के कारण तुम्हारा भगवान है।?भय के कारण तुम कांप रहे हो। तुम्हारी प्रार्थनाओं में आनंद-उत्सव नहीं है, सिर्फ भय का कंपन है। तुम डरते हो नर्क से, प्रलोभित हो स्वर्ग से।?

मनुष्य की छाती से भय का पत्थर हटना चाहिए। प्रेम के फूल खिलने चाहिए।?प्रेम का ही आत्यंतिक अनुभव परमात्मा है।?इसलिए मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि परमात्मा से प्रेम करो।?मैं तो बस यह कहता हूं कि प्रेम करो और एक दिन तुम पाओगे कि प्रेम करते-करते परमात्मा तुम्हारे द्वार पर आ गया है। अपने बच्चे को, पत्नी को, परिवार को, प्रियजनों को, मनुष्यों को, पशुओं को, पक्षियों को, पौधों को, पहाड़ों को, जहां तक तुमसे बन पड़े प्रेम फैलाओ। जैसे-जैसे तुम्हारा प्रेम फैलने लगेगा, वैसे-वैसे तुम पाओगे कि परमात्मा की झलक आनी शुरू हो गई। जिस दिन तुम्हारा प्रेम विराट हो जाता है और तुम प्रेममय हो जाते हो,?उसी दिन तुम पाते हो कि परमात्मा उतर आया है। इसीलिए मैं कहता हूं कि भक्ति प्रेम की ही आत्यंतिक उत्कर्ष की दशा है। परमात्मा को भूलो और प्रेम को जीवन में उमगाओ। जैसे-जैसे तुम्हारा प्रेम बढ़ता जाएगा, तुम्हारे और परमात्मा के बीच का फासला कम होता चला जाएगा।

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