गंगा का पानी निर्मल व बेशकीमती
गंगा का कण-कण खुद में एसटीपी है। भारत सरकार की ही एक संस्था नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीच्यूट नागपुर (नीरी) द्वारा जुलाई 2011 में जारी रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है।
वाराणसी। गंगा का कण-कण खुद में एसटीपी है। भारत सरकार की ही एक संस्था नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग एंड रिसर्च इंस्टीच्यूट नागपुर (नीरी) द्वारा जुलाई 2011 में जारी रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है। रिपोर्ट के मुताबिक भागीरथी का मुख्य गुण उसके तलछट की माटी में पाया जाता है। तलछट के अति सूक्ष्म कण (तकरीबन .01 एमएम) आंशिक रूप से एक खास रेडियोधर्मिता से प्रभावित होते हैं जो गंगा के पानी में जगह-जगह घुलनेवाले हानिकारक बैक्टिरिया को तत्काल नष्ट कर देते हैं। इससे पानी में कॉलिफैक्स की मात्रा बढ़ जाती है जो जलधारा की ऊपरी लहर में मौजूद कॉलिफॉर्म्स (मलजल जनित रोगाणुओं) को पूरी तरह नष्ट कर देता है। यही वजह है कि गंगा के पानी को अन्य नदियों की अपेक्षा ज्यादा निर्मल व बेशकीमती माना गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि टिहरी डैम भागीरथी संग बहने वाले और तलछट में मौजूद रहने वाले 90 प्रतिशत रेडियोधर्मी प्रभावित कणों को रोक ले रहा है। इसके चलते गंगा में स्वत: शुद्ध होने की प्रक्रिया पर बुरा असर पड़ रहा है। निहितार्थ यह कि यदि गंगा को कर दें अविरल तो सारी गंदगी का समाधान गंगा स्वयं कर लेंगी। इतना ही नहीं रिपोर्ट को यदि गंभीरता से देखें तो यह भी बात सामने आ जाती है कि भगीरथ के जल में जो गुण हैं, वे सारे के सारे गंगा की दूसरी सहायक नदी अलकनंदा में भी है। टिहरी और अलकनंदा के बीच जांच करने पर पाया गया कि यदि अलकनंदा का जल बाधित न किया गया तो वह भी गंगाजल के सारे गुणों को बरकरार रखने में सक्षम है। दयनीय दशा का कारण बांधों का निर्माण प्रो. यूके चौधरी गंगा के प्रवाह पर बांध के सवाल पर नदी विज्ञानी एवं बीएचयू में गंगा अन्वेषण केंद्र के संस्थापक रहे प्रो. यूके चौधरी का कहना है कि गंगा की जो दयनीय दशा हमारे सामने है उसका एकमात्र कारण गंगा के प्रवाह पर बांधों का निर्माण है। बताया, भगीरथ (नदी) के तलछट व जल में मौजूद रहने वाले अति सूक्ष्म कणों के रेडियो एक्टिव पदार्थ की क्रियाशीलता गतिमान पानी में ही संभव है। गंगा पर डैम बनने से पानी का प्रवाह जलाशय में रुक जाता है लिहाजा एक तरफ जहां ये रडियो एक्टिव पदार्थ काम करना बंद कर देते हैं तो दूसरी तरफ पानी के प्रवाह में कॉलिफैगस की भी मात्रा घटने लगती है और पानी में हानिकारक बैक्टिरियों की संख्या बढ़ने लगती है। गंगा में बढ़ते प्रदूषण की मूल वजह भी यही है। गंगा को बचाने के लिए निर्मलता की जगह सबसे पहले उसकी अविरलता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। एनजीआरबीए की बैठक में संत समाज की ओर से प्रस्ताव राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की गत 17 अप्रैल की बैठक में अविछिन्न गंगा सेवा अभियानम् की तरफ से प्रस्ताव कहा गया कि गंगा की अविरलता जीवन की शाश्वत निरंतरता का पर्याय है। लिहाजा गंगा की विशिष्टता को संरक्षित रखने के लिए बेहद जरूरी है कि उसके जल का निरंतर संपर्क चट्टानों, तलहटी की मिट्टी, उसके किनारों के अलावा हवा और सूर्य की किरणों से बिना किसी बाधा के होता रहे। गंगा का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि मूल नदी भागीरथ पर मनेरीभाल फेस-1, फेस-2 के अलावा टेहरी डैम और इसके नीचे कोटेश्वर डैम बना कर नदी की धारा को कमजोर कर दिया गया। इसके नीचे देवप्रयाग से हरिद्वार तक श्रृषिकेश-चिल्ला बैराज, भीमगौड़ा बैराज के जरिए भागीरथ से आ रहे गंगाजल के रहे-सहे जलगुण को भी नष्ट कर दिया गया। इतना ही नहीं हरिद्वार में भागीरथी का 96 फीसदी जल सिंचाई, पेयजल के नाम पर ऊपरी गंगा कैनाल में डाइवर्ट कर दिया जाता है। इसके बाद भी गंगा को दुर्गति से मुक्ति नहीं मिलती। हरिद्वार के बाद गंगा जब नरौरा पहुंचती हैं तो वहां से भी सिंचाई के नाम पर इस नदी से 97 फीसदी पानी निकाल कर लोवर कैनाल के हवाले कर दिया जाता है।
पीएम की सद्बुबिुद्ध को किया यज्ञ वाराणसी- गंगा को बचाने और प्रधानमंत्री को सद्बब़ुद्धि प्रदान करने के लिए मां गंगा निषाद राज सेवा समिति की ओर से शिवाला स्थित चेतसिंह किला के निकट बुद्धि-शुद्धि यज्ञ का आयोजन किया गया। अभियान के समर्थन में जुलूस निकाला- गंगा सेवा अभियानम के समर्थन में अविरल प्रवाह के लिए गढ़वासी टोला से वासुदेव ओबराय के संयोजकत्व में जुलूस निकाला गया जो गउमठ, शीतला गली, ब्रहृनाल, सत्ती चौतरा, सुडि़या आदि क्षेत्रों से भ्रमण करते हुए रानी कुआं पर गोष्ठी के रूप में तब्दील हो गया।
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