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श्रीराधा-रमण मंदिर में रम जाए मन

पानीपत के विराट नगर में स्थित श्रीराधा-रमण मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। यहां हर रोज असंख्य श्रद्धालु धोक लगाने आते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां आने पर उनका मन भक्ति में रम जाता है। यहां जन्माष्टमी के साथ-साथ सभी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस मंदिर के प्रबंधन के लिए कमेटी बनाई गई है जो मंदिर के विकास कार्य देखती है।

By Edited By: Published: Mon, 04 Jun 2012 05:00 PM (IST)Updated: Mon, 04 Jun 2012 05:00 PM (IST)
श्रीराधा-रमण मंदिर में रम जाए मन

सुदेव श्रीकृष्ण का जन्म भले ही मथुरा में और लालन-पालन वृंदावन में हुआ लेकिन उनका हरियाणा से भी नाता रहा है। महाभारत के युद्ध के दौरान वे हरियाणा में पधारे और कुरुक्षेत्र के खुले मैदान में अर्जुन को गीता उपदेश दिया जो भारत के लिए ही नहीं अपितु समस्त विश्व के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है। हरियाणावासियों का उनके प्रति अटूट विश्वास है। यही कारण है कि अब हरियाणाभर में उनके धार्मिक स्थल बने हुए हैं। पानीपत के विराट नगर में स्थित श्रीराधा-रमण मंदिर भी उनमें से एक है। श्रद्धालु यहां आकर राधे-राधे का जयघोष करते हुए अभिवादन करते हैं।

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इस मंदिर की स्थापना वृंदावन निवासी प्रसिद्ध कथावाचक पंडित मदनलाल व्यास ने श्रद्धालुओं के सहयोग से वर्ष 2000 में की थी। वे अब समय-समय पर यहां आकर कीर्तन का आयोजन करते हैं। अपने मृदुल स्वभाव से उन्होंने श्रद्धालुओं का श्रीराधा-रमण मंदिर के प्रति लगाव बढ़ाया है। अब यहां हर रोज असंख्य श्रद्धालु धोक लगाने आते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां आने पर उनका मन भक्ति में रम जाता है। यहां मृत्युंजय व दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा शिव रुद्राभिषेक का आयोजन किया जाता है।

इस मंदिर में शिव दरबार, शिवलिंग, पवनपुत्र हनुमान, रामदरबार, श्रीराधा-कृष्ण, मां भगवती और शिरड़ी वाले साई बाबा की मूर्तियां स्थापित हैं। इन प्रतिमाओं की सुबह-शाम विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है जिसमें मंदिर के चारों तरफ बसे विराट नगर के निवासी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। मंदिर में सभी त्योहार हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर को खूब सजाया जाता है और झांकियां निकाली जाती हैं। झूले में बाल रूप में ठाकुरजी को स्थापित किया जाता है।

रामनवमी के अवसर पर मंदिर में रामचरित मानस का पाठ किया जाता है और रामजन्म के समय भोग डालकर प्रसाद का वितरण किया जाता है। नवरात्रों में दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां भगवती का गुणगान किया जाता है। अष्टमी के दिन मां भगवती का विशेष गुणगान करके कंजकें बैठाई जाती हैं। अन्नकूट पर विशेष व्यंजनों से वासुदेव श्रीकृष्ण को भोग लगाकर भंडारा किया जाता है। हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा का पाठ करके भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया जाता है। संक्रांति और पूर्णमासी के दिन सुंदरकांड का पाठ और सत्यनारायण की कथा का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में प्रात: कथा में कार्तिक महातम व स्नान ध्यान पर कथा की जाती है। शिवरात्रि पर शिवभक्त गंगाजल से शिवशंकर का अभिषेक करते हैं। वार्षिक भंडारा हर वर्ष फरवरी माह में लगाया जाता है।

यहां समय-समय पर चिकित्सा शिविर लगाए जाते हैं जिनमें एक्यूप्रेशर द्वारा इलाज किया जाता है तथा हृदय रोगियों की जांच निशुल्क की जाती है।

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