दर्शनी ड्योढी से यात्रा का विशेष महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार भूमिका मंदिर से भंडारे से लुप्त होकर जब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी त्रिकुटा पर्वत की ओर जा रही थीं तो सर्वप्रथम यहां से ही त्रिकुट पर्वत की ओर देखा था। तभी से इस स्थान को दर्शनी ड्योढी के नाम से जाना जाता है।
कटड़ा। पौराणिक कथा के अनुसार भूमिका मंदिर से भंडारे से लुप्त होकर जब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी त्रिकुटा पर्वत की ओर जा रही थीं तो सर्वप्रथम यहां से ही त्रिकुट पर्वत की ओर देखा था। तभी से इस स्थान को दर्शनी ड्योढी के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि इस ड्योढी से होकर ही मां वैष्णो देवी जी के दर्शन के लिए जाना चाहिए। क्योंकि, मां भी इसी मार्ग से त्रिकुट पर्वत की ओर गई थीं। आज भी जो श्रद्धालु मां वैष्णो देवी जी के इतिहास से परिचित हैं, वे इसी मार्ग से अपनी यात्रा आरंभ करते हैं। वर्तमान में प्रशासन की अनदेखी के चलते इस स्थल को अछूता छोड़ दिया गया है। इसके विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा, जिस कारण वर्तमान में दर्शनी ड्योढी की हालत बहुत खस्ता हो चुकी है। मां वैष्णो देवी जी के दर्शन के लिए आए कुछ श्रद्धालु, जो इस दर्शनी ड्योढी के महत्व के बारे में परिचित हैं, ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड से मांग की है कि वह इस ऐतिहासिक पवित्र धरोहर को अपने अधीन कर इसका विकास कार्य करवाए। ताकि, इसकी महत्ता के बारे में श्रद्धालुओं को जानकारी प्राप्त हो सके। साथ ही उन श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस न पहुंचे, जो इस दर्शनी ड्योढी के महत्व को जानते हुए इसी ड्योढी से होकर मां वैष्णो देवी जी के दर्शन के लिए प्रस्थान करते हैं।
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