बड़ी फलदाई है चौदह कोसी परिक्रमा
पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय नवमी को किए गए पुण्य कभी क्षय नहीं होने की तिथि है । कार्तिक शुक्ल पक्ष की इसी तिथि को न केवल सतयुग का प्राकट्य हुआ, बल्कि अयोध्या भी इस दिन धरा धाम पर अवतरित हुई।
अयोध्या[रमेश मिश्र]। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय नवमी को किए गए पुण्य कभी क्षय नहीं होने की तिथि है । कार्तिक शुक्ल पक्ष की इसी तिथि को न केवल सतयुग का प्राकट्य हुआ, बल्कि अयोध्या भी इस दिन धरा धाम पर अवतरित हुई। अयोध्या के जन्मोत्सव पर रामनगरी की 14 कोसी परिक्रमा मान्यताओं के अनुसार बड़ी फलदाई है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन की गई 14 कोस की परिक्रमा भू:, भुव:, स्व:, मह, जन, तप, सत, अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महीतल व पाताल के नाम वाले चौदह भुवनों के आवागमन से जीव को मुक्त कर देती है।
पद्म पुराण, विष्णु पुराण व स्कंद पुराण में परिक्रमा की महत्ता को रेखांकित करते हुए लिखा गया है यानि-कानि च पापानि, जन्मान्तर कृतानि च, तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।। अर्थात परिक्रमा का एक एक-पग कई जन्मों के पाप को नष्ट करने वाला है।
रामकथा कुंज के महंत व रामनगरी के विशिष्ट विद्वान डॉ. रामानंद दास कहते हैं कि अयोध्या सप्तपुरियों की मस्तक है। मस्तक शरीर का सबसे पवित्र स्थान होता हैं। इस दृष्टि से पवित्र नगरी अयोध्या में अक्षय नवमी के विशिष्ट मुहूर्त में की गई परिक्रमा का फल स्थायी व लाखों गुना ज्यादा होता है।
फिलहाल सप्तपुरियों में शिरोमणि मानी जाने वाली अयोध्या तीर्थ के के रूप में पावन सलिला सरयू में स्नान कर श्रद्धालु रामनगरी की 14 कोसी परिक्रमा आरंभ करते हैं। भगवान विष्णु के नेत्र के जन्म लेकर नेत्रजा के नाम से प्रसिद्ध सरयू इस तीर्थ की जलरूपेण ब्रह्म हैं। जंगम तीर्थ के रूप में इस अवसर पर मौजूद संत-महंतों के सानिध्य में परिक्रमा के साथ-साथ श्रद्धालुओं द्वारा स्थावर तीर्थो के रूप में रामजन्मभूमि, कनक भवन, हनुमानगढ़ी व नागेश्वरनाथ आदि मंदिरों का दर्शन-पूजन करने की परंपरा है।
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