राधा-कृष्ण मंदिर में दिखें देवों के स्वरूप
देश का कोना-कोना किसी न किसी देवी व देवता की मान्यता और आस्था से जुड़ा है। हरियाणा के लोग भी शुरू से भक्ति में शक्ति की परिपाटी पर चलते आ रहे हैं। देवी-देवताओं के अनुयायी भक्तों ने उनके धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया है।
देश का कोना-कोना किसी न किसी देवी व देवता की मान्यता और आस्था से जुड़ा है। हरियाणा के लोग भी शुरू से भक्ति में शक्ति की परिपाटी पर चलते आ रहे हैं। देवी-देवताओं के अनुयायी भक्तों ने उनके धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया है।
हरियाणा में देवों के धार्मिक स्थल हरियाणा वासियों की देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था को परिलक्षित करते हैं। भले ही वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा में और लालन-पालन वृंदावन में हुआ लेकिन उनका हरियाणा से भी गहरा संबंध रहा है। महाभारत के युद्ध के दौरान वे हरियाणा पधारे और कुरुक्षेत्र के खुले मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया जो भारत के लिए ही नहीं अपितु समस्त विश्व के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है। हरियाणा के अनेक गांवों और शहरों में श्रीकृष्ण व राधा के धार्मिक स्थल बने हुए हैं। पानीपत में सब्जीमंडी के पास स्थित न्यू हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में राधा-कृष्ण मंदिर भी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है जहां श्रद्धालु राधे-कृष्ण, कृष्ण-राधे का जयघोष करते हुए अभिवादन करते हैं। मंदिर में हनुमान, मां भगवती, नवग्रहों, श्रीराधा-कृष्ण, शिव शंकर, गणेश व राम दरबार की मनोहर मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इन स्वरूपों को देखकर हर श्रद्धालु का मन भक्ति में रम जाता है। इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1980 में आचार्य प्रेम भाई ने की थी। जगदीश प्रसाद शास्त्री की देख-रेख में यहां हर रविवार सत्संग का आयोजन किया जाता है। मंदिर में राम-दरबार की प्रतिमा हर श्रद्धालु के मन को मोह लेती है। कृष्ण द्वारा गोपिकाओं को रिझाने व राधा से प्रेम का वर्णन प्राचीन साहित्य में भी वर्णित है जो कृष्ण की अनेक लीलाओं के बारे में भी बोध कराता है। रासलीलाओं में कृष्ण और राधा के रमणीय पहलू सबको भाव-विभोर कर देते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में कृष्णस्तु भगवान स्वयं का उद्घोष साक्षी है कि अन्य अवतार तो अंश अवतार हैं किंतु कृष्ण का अवतार परिपूर्ण है जो 16 कलाओं से अवतरित हुए हैं। कृष्ण की अलौकिक लीलाओं का आरंभ से ही जन्म हो गया था। जन्म के तीन माह बाद पूतना वध, दूसरे वर्ष में यमलार्जुन उद्धार, पांचवें वर्ष में दुष्ट अधासुर एवं बकासुर संहार, सात वर्ष की अवस्था में गिरिराज गोवर्धन को उंगुली पर धारण करना और नौवें वर्ष में कालिय-दमन एवं दावानल पान जैसी बाल-लीलाएं उनके पूर्ण ईश्वरत्व की परिचायक हैं।
कृष्ण द्वारा द्रोपदी का चीर बढ़ाना और नारद द्वारा उन्हें एक ही समय में सोलह हजार रानियों में से प्रत्येक के महल में भिन्न-भिन्न लीलाएं करते पाना और मृत गुरु-पुत्र व देवकी पुत्रों को वापस लाना आदि अनगिनत लीलाएं भी उनके ईश्वरत्व का बोध कराती हैं। कृष्ण ने बाल्यकाल में ही अपने मुख के भीतर माता यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराए और कुरुक्षेत्र में अर्जुन को। कौरवों की राजसभा में मौजूद लोगों और द्वारका के मार्ग में उत्तक ऋषि को अपना विराट-स्वरूप भी दिखाया। कृष्ण ने द्वारका वासियों को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन भी करवाए। उन्होंने लोक कल्याण के लिए सवा सौ साल तक विविध लीलाएं की व अन्त में परमधाम सिधार गए। स्वयं श्रीकृष्ण ने साधुओं की रक्षा, दुष्टों का नाश और धर्म की स्थापना को अपने अवतार का प्रयोजन बताया। लोक कल्याण के निमित्त ही कृष्णावतार हुआ था। नि:संदेह कृष्ण का अवतार सौंदर्य एवं माधुर्य का अवतार है। उनके जीवन-दर्शन व नीतिगत निर्णयों ने उन्हें ईश्वरीय आभा-चक्र से सुशोभित किया।
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