गणपति से सीखें
गणेशोत्सव हमें गणतंत्र की जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक बनाता है। यदि हम गणपति की भूमिका और उनके आदर्र्शो से सीखें, तो यह जन-जागरण का महापर्व बन जाएगा।
भारत में उत्सवों और पर्र्वो की भरमार है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं विकास में इन त्योहारों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन पर्वों में भाद्रपद मास का गणेशोत्सव अध्यात्म की सीमाएं लांघकर राष्ट्रीय महापर्व बन गया है।
इस धार्मिक उत्सव को यह विशिष्ट स्वरूप देने का श्रेय लोकमान्य तिलक को जाता है। वर्ष 1892 तक गणेशोत्सव कुछ संपन्न मराठी घरानों द्वारा ही मनाया जाता था। तब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तिलक ने स्वाधीनता के आंदोलन को जन-जन से जोड़ने के लिए तथा भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान हेतु गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप दिया। 1893 में लोकमान्य की प्रेरणा से भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में चतुर्थी से चतुर्दशी तक सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाए जाने की शुरुआत हुई। गणेशोत्सव स्वराज्य के संदेश के प्रसारण में प्रभावकारी सिद्ध हुआ और जनसाधारण को स्वतंत्रता-संग्राम से जोड़ने में भी सफलता प्राप्त हुई। गणपति से गणतंत्र-प्राप्ति की कामना फलीभूत हुई। तिलक द्वारा प्रवर्तित सार्वजनिक गणेशोत्सव महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहा। अब यह राष्ट्र के प्रत्येक अंचल में बड़े धूमधाम से मनाया जाने लगा है। आज भी गणेशोत्सव स्वराज्य को सुराज्य बनाने में महती भूमिका निभा रहा है।
गणेश शब्द का अर्थ इस तरह बताया गया है - गणानां जीवजातानां य: ईश:, स्वामी स गणेश: अर्थात जो समस्त जीव-जाति (प्राणिमात्र) के ईश यानी स्वामी हों। ब्रहृमवैवर्त्तपुराण में भगवान विष्णु गणेश की दार्शनिक व्याख्या करते हुए कहते हैं - ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक:। तयोरीशं परम् ब्रšा गणेशं प्रणमाम्यहम्। अर्थात ग ज्ञानार्थवाचक और ण निर्वाणवाचक है। इन दोनों (ग+ण) के जो ईश हैं, उन परमब्रहृम गणेश को मैं प्रणाम करता हूं।
संस्कृत में गण शब्द समूहवाचक माना गया है - गणशब्द: समूहस्य वाचक: परिकीर्तित:। अत: गणपति शब्द का अर्थ हुआ - समूहों का पालन करने वाला परमात्मा। एक अन्य अन्वय के अनुसार, गणानां पति: गणपति:। देवताओं के अधिपति को गणपति कहते हैं। इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है - निर्गुण-सगुण ब्रšागणानां पति: गणपति:। अर्थात, जो निर्गुण और सगुण दोनों रूप में व्यक्त ब्रšा का अधिपति है, वह परमेश्वर गणपति है।
मान्यता है कि सारे संसार के नियंता परमब्रहृम परमात्मा ही गणपति हैं। यह गणपति निर्गुण-निराकार स्वरूप में प्रणव (ॐ) तथा सगुण-साकार रूप में गजमुख (गजानन) हैं।
पौराणिक कथाओं में पार्वतीसुत को गणेश और गणपति नामों से संबोधित किया गया है। शिवपुराण का कथन है कि पार्वतीपुत्र को त्रिदेवों- ब्रšा, विष्णु और महेश ने गणाध्यक्ष का पद देकर प्रथमपूज्य बनाया। अन्य पुराणों में श्रीगणेश के सर्वाध्यक्ष एवं प्रथमपूज्यनीय बनने के कुछ और कथानक प्राप्त होते हैं, जिनका अध्ययन करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि परमपुरुष (शिव) और आद्याशक्ति (पार्वती) के दिव्य अंश का सम्मिलित तेज ही गणेश हैं और वह ही गणपति अथवा गणाध्यक्ष पद पर आसीन है। वेदों में गणानां त्वा.. वैदिक ऋचा के द्वारा इन्हीं का आवाहन और स्तवन किया गया है। आज भी प्रत्येक पूजन या मांगलिक कार्य के शुभारंभ में सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा की जाती है। गणेश, गणपति और गणाध्यक्ष शब्द समान अर्थवाले हैं।
शिव-शक्ति के पुत्र के गणपति बनने से देवगणों के मध्य गणतंत्र की व्यवस्था का श्रीगणेश हो गया था। गणेशजी ने गणाध्यक्ष के रूप में जिस निष्पक्षता के साथ काम किया, वह आज के राष्ट्राध्यक्षों के लिए भी अनुकरणीय है। गणेश पुराण के अनुसार, जब शंकरजी ने त्रिपुरासुर के साथ संग्राम के लिए प्रस्थान करने से पूर्व दैवी व्यवस्था का उल्लंघन करते हुए गणेशजी को पुत्र जानकर उनके नियम (प्रथम-पूजन) की उपेक्षा की, तब उन्हें विघ्नों से पीडि़त होना पड़ा। इसी प्रकार जगदंबा ने महिषासुर का वध करने से पूर्व गणपति को भुला दिया, तो उन्हें भी दंड का सामना करना पड़ा।
हालांकि गणेशजी यदि अपने माता-पिता के साथ पक्षपात करना चाहते तो कर सकते थे, परंतु चूंकि शिव-शक्ति ने गणपति पद की अनदेखी की थी, इसलिए गणपति को अपने माता-पिता के विरुद्ध नियम भंग किए जाने पर कार्यवाही करने को विवश होना पड़ा। गणपति ने पुत्र के रूप में अपयश अपने सिर पर ले लिया, पर वे अपने कर्त्तव्य का पालन करने से नहीं चूके। हमें इस घटना से सीखना चाहिए। आज राजनेता व अधिकारी अपने परिवार और मित्रों के स्वार्थ सिद्ध करने के चक्कर में मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे हैं, नियमों को ताक पर रखकर अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसे में गणेश जी की शिक्षा की अधिक आवश्यकता है। यदि राजनेता और अधिकारी गणेशजी की तरह ईमानदारी के साथ अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे तो गणपति भारतीय गणतंत्र को उन्नति के शिखर पर ले जाएंगे और संपूर्ण विश्व में उसे अपनी तरह अग्रणी बना देंगे। गणतंत्र के प्रणेता गणपति का शुभाशीर्वाद हमें तभी मिलेगा, जब हम राष्ट्र-धर्म का निष्ठापूर्वक पालन करेंगे।
गणेशोत्सव हमें गणतंत्र की जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक बनाएगा, यदि हम गणपति की भूमिका को ठीक से समझने हेतु प्रयत्नशील होंगे। तब यह गणेशोत्सव में जन-जागरण का महापर्व बन जाएगा।
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