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तो नदी किनारे का हर शहर काशी होता

गंगा को लेकर इस समय हर आस्तिक भारतीय मन उद्वेलित है। चिंतित है - क्या होगा जब गंगा नहीं रहेंगी? क्या होगा उस आस्था और विश्वास का जो गंगा के साथ जुड़ा है? क्या होगा उस भावनात्मक संगम का जो बिना किसी राजनीतिक आह्वान या सुव्यवस्था के हर मकर संक्त्रान्ति, मौनी अमावस्या, गंगा दशहरा या माघ और कार्तिक महीने में गंगा किनारे बसे तीर्थ नगरों में होता है?

By Edited By: Published: Fri, 11 May 2012 11:33 AM (IST)Updated: Fri, 11 May 2012 11:33 AM (IST)
तो नदी किनारे का हर शहर काशी होता

बनारस। गंगा को लेकर इस समय हर आस्तिक भारतीय मन उद्वेलित है। चिंतित है - क्या होगा जब गंगा नहीं रहेंगी? क्या होगा उस आस्था और विश्वास का जो गंगा के साथ जुड़ा है? क्या होगा उस भावनात्मक संगम का जो बिना किसी राजनीतिक आह्वान या सुव्यवस्था के हर मकर संक्त्रान्ति, मौनी अमावस्या, गंगा दशहरा या माघ और कार्तिक महीने में गंगा किनारे बसे तीर्थ नगरों में होता है? नदियों का संगम उस विशाल मानव संगम के आगे घुटने टेक देता है। प्रचंड शील या निचाट गर्मी भी उस भावनात्मक प्रवाह को निरुद्ध नहीं कर पाती। बिना किसी औपचारिक निमन्त्रण के लोग वहां इकट्ठा होते हैं, आस्था और विश्वास में गोते लगाते हैं और श्रद्धा के रंग में डूबे वापस होते हैं क्योंकि गंगा उनके लिए मात्र एक नदी नहीं है। ऐसा होता तो हर नदी गंगा होती और उसके तट पर बसा हर नगर काशी, हरिद्वार या प्रयाग। लेकिन ऐसा नहीं है। अत्याधुनिक मान्यता वालों के लिए गंगा भले ही एक नदी हो, उपभोक्तावादी संस्कृति की एक वस्तु हो, जिसके जल को बांधकर बिजली पैदा की जाय और नगरों महानगरों में बैठे लोगों के वातानुकूलित कमरों को चाकचिक्य से भरा जा सके लेकिन अधिकांश भारतीयों के लिए गंगा मां हैं। बाहर से अधिक भीतरी अन्धकार को हरने वाली सतत प्रवाहमान ज्योति पुंज है, जीवन की धारा है। लोक जीवन में समाए विविध रंगों और उत्सवों की धारा है, अपने दोनों किनारों से जुड़े जीवन और जीविकोपार्जन की धारा है। गंगा की इस धारा को बांधने का अर्थ है उसके अस्तित्व को समाप्त करने का षड्यन्त्र। आर्यावर्त की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का उपक्त्रम और इस प्रकार एक विशाल जन समुदाय को दुष्प्रभावित करने का कुचक्त्र। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर सैकड़ो सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं और योजनाएं फलीं, फूलीं पर कल कारखानों का उच्छिष्ट और मोटी-मोटी सीवर पाइपों, जो गंगा में गिरते हैं, का कुछ बिगाड़ नहीं पाई। दूसरी तरफ बांध बना- बनाकर गंगा का अविरल प्रवाह भी रोक दिया गया। हमारे शास्त्र कहते हैं - नदी वेगेन शुद्धयति। अर्थात नदी अपने जल के वेग से स्वयं ही शुद्ध होती रहती है। अपने अविरल प्रवाह से ही वह जीवित रहती है। उसके वेग को रोक देना यानी उस नदी को मार देना है। गंगा की उसी अविरलता पर बांध बनाकर कुठाराघात किया गया है। उसके वेग को रोक देना उस आस्था और विश्र्वास को मार देना है जिसमें स्नान है, वजू है, दीपदान है, आरपार की माला है, गंगा गीत और आरती है। जीवन के प्रारम्भ से लेकर अन्तिम प्रस्थान तक के लिए मां गंगा का आंचल हमारा आश्रय है, भावनात्मक सम्बल है। अविरलता के लिए आइए, हम सब प्रयास करें क्योंकि नदी वेगेन शुद्धयति।

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