महाकुंभ: फिर होंगे मोह-माया की दुनिया में
परमात्मा का दीदार, मोक्ष की आस। इस कामना के साथ यहां एक माह से प्रवास कर रहे कल्पवासियों का डेरा सोमवार को संगमनगरी से उठ जाएगा। उनके साथ होंगी त्रिवेणी के आध्यात्मिक अहसास की सुखद यादें और वह संकल्प जो उन्हें अगले साल के कल्पवास के लिए प्रेरणा देगा।
कुंभनगर [शरद द्विवेदी]। परमात्मा का दीदार, मोक्ष की आस। इस कामना के साथ यहां एक माह से प्रवास कर रहे कल्पवासियों का डेरा सोमवार को संगमनगरी से उठ जाएगा। उनके साथ होंगी त्रिवेणी के आध्यात्मिक अहसास की सुखद यादें और वह संकल्प जो उन्हें अगले साल के कल्पवास के लिए प्रेरणा देगा। कल्पवासी सोमवार को माघी पूर्णिमा का स्नान करेंगें, ध्यान करेंगे और कुलदेवता की पूजा के साथ अपनी मोह-माया की दुनिया में फिर से प्रवेश करेंगे।
पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ ही संगमनगरी में कल्पवास शुरू हुआ था। लगभग दो लाख कल्पवासियों ने विभिन्न शिविरों में पूजा-पाठ जप-तप शुरू किया था। इस बार कल्पवासियों को प्रमुख स्नानों में तीन में ही शामिल होने का अवसर मिला। मकर संक्राति का स्नान कल्पवास से पहले ही हो चुका था। हालांकि उन्हें इस बात का संतोष है कि मौनी अमावस्या व वसंतपंचमी के शाही स्नान के वे साक्षी रहे। कल्पवासियों में एक भदोही के वेंकटेश्वर नाथ दुबे ने कहा कि
इतने दिनों तक गंगा के करीब रहने के बाद यहां से मोह सा हो गया है हालांकि घर की जिम्मेदारियां भी जरूरी हैं। हमारे शिविरों में परिवार जैसा सामंजस्य हो गया है। हम एक-दूसरे को याद करेंगे। प्रयाग की पावन भूमि पर कल्पवास की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। माघ मास में पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक चलने वाले कल्पवास में लोग सारी सुख-सुविधाओं से परे, संतों के सानिध्य में रहकर लोगों ने पुण्य अर्जित करने के लिए दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन व भजन-कीर्तन में लीन रहते हैं। अबकी बार कुंभ पर्व पड़ने से कल्पवास का महात्म्य काफी बढ़ गया। इससे कल्पवासियों की संख्या काफी है। बारिश, आंधी जैसी अनेक बाधाएं आने के बावजूद कल्पवासी प्रयाग क्षेत्र में डटे रहे। सोमवार को श्रद्धालु सुबह स्नान के बाद वापस लौटने लगेंगे। वैसे कुछ लोग शिवरात्रि तक यहां रहकर तपस्या करते रहेंगे। ऐसे कल्पवासियों की संख्या हजारों में होती है।
कुलदेवता की पूजा और फिर आने का संकल्प- कल्पवासी, माघी पूर्णिमा स्नान के बाद अपने शिविरों में पूजन-अर्चन करेंगे। खुद के कल्याण एवं पूर्वजों की आत्मशांति की कामना के लिए समस्त देवों के साथ कुल देवता का पूजन होगा। वह उनसे भूल-चूक की क्षमा-याचना व अगले वर्ष पुन: आने का संकल्प लेकर इस तपस्थली से विदा लेंगे।
साथ जाएगा जौ का पौधा- पौष पूर्णिमा पर कल्पवास करने आए श्रद्धालु अपने साथ तुलसी का बिरवा लेकर आए थे। उन्होंने उसे अपने टेंट के द्वार पर लगाया, साथ ही जौ बोकर उसकी दिनरात पूजा की। माघी पूर्णिमा पर स्नान के बाद यहां से जाते समय वह तुलसी का बिरवा व जौ के पौधों को प्रसाद स्वरूप साथ ले जाएंगे। प्रयाग की तपस्थी का यह सबसे बड़ा प्रसाद माना जाता है, जिसे कल्पवासी अपने घर के सबसे पवित्र स्थान पर रखते हैं। इससे घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
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