प्रभु की कृपा का पात्र बनें
तीर्थराज प्रयाग की भूमि में जप-तप करने का सौभाग्य हर व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता। यहां भाग्यशाली लोग ही पहुंच पाते हैं। इसलिए यहां आने पर सच्चे हृदय से डुबकी लगानी चाहिए। इसके बाद प्रभु सारी भव-बाधा का स्वत: ही नाश कर देंगे।
कुंभनगर। तीर्थराज प्रयाग की भूमि में जप-तप करने का सौभाग्य हर व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता। यहां भाग्यशाली लोग ही पहुंच पाते हैं। इसलिए यहां आने पर सच्चे हृदय से डुबकी लगानी चाहिए। इसके बाद प्रभु सारी भव-बाधा का स्वत: ही नाश कर देंगे। स्वामी बटुक जी महाराज ने अपने शिविर में प्रवचन के दौरान यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इंसान को अपनी भलाई के बारे में तो सोचना चाहिए परंतु दूसरों का अहित नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति गलत भावना से कार्य करते हैं उनका कभी कल्याण नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि परमात्मा का कृपा पात्र बनने के लिए इंसान को सच्चाई के मार्ग का अनुशरण करना चाहिए। यही हर समस्याओं का आसान समाधान है।
प्रभु की कृपा का पात्र बनें-
हिंदू धर्म के देवी-देवता लोककल्याण के लिए धरती पर अवतरित होते रहते हैं। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि जब-जब धर्म की हानि होगी उसे बचाने के लिए वह स्वयं पृथ्वी पर आएंगे। प्रभु की कृपापात्र बनने के लिए इंसान को धर्म के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, न कि अधर्मी बनकर उनकी सजा का। सेक्टर 11 स्थित भक्ति वेदान्तनगर काशी शिविर में चल रही श्रीराम कथा में महामण्डलेश्र्र्वर स्वामी डा. रामकमलदास वेदांती जी महाराज ने यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा किहमारे प्रभु हमारे देवता हमारे भगवान कृपाल है। द्रोपदी की पुकार पर साड़ी को बड़ा गए। गज के रूदन पर ग्राह को मार डाले।
सत्संग सिखाता है जीने की कला- सत्संग से मनुष्य का सर्वागीण विकास होता है। भक्ति, योग और ज्ञान का समन्वय भगवतगीता में मिलता है। भगवतगीता का ज्ञान सत्संग से मिला है, सत्संग मानव को जीने की कला सिखाता है। स्वामी प्रेरणामूर्ति ने अपने शिविर में यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि व्यवहारिक एवं आध्यात्मिक सभी बातों का ज्ञान सत्संग से मिलता है। इसलिए करोड़ काम छोड़कर भी सत्संग अवश्य करना चाहिए। सत्संगामृत की बहती धारा के अंत में प्रेरणामूर्ति श्रीजी ने भक्ति की महिमा बताते हुए कहा कि भक्ति भगवान से संबंध प्रस्थापित करने का जरिया है। भक्ति से भगवान वश हो जाते है। भक्ति बिना भजन नहीं हो सकता। भाव से कुभाव से या किसी भी भाव से भगवान को भजते है तो साधक को मुक्ति अवश्य मिलती है। इस दौरान शिष्य अवधूत भी मौजूद थे।
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