बदरीनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद
वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ रविवार को भू-बैकुंठ धाम बदरी विशाल के कपाट शीतकाल के लिए अपराह्न 3 बजकर 25 मिनट पर बंद कर दिए गए हैं। अब छह माह तक नारायण, लक्ष्मी के साथ गर्भगृह में विराजेंगे। भगवान की उत्सव डोली सोमवार को पांडुकेश्वर के लिए रवाना होगी। इसके बाद शीतकाल में पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बदरी मंदिर में ही श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर सकेंगे।
बदरीनाथ, जागरण प्रतिनिधि। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ रविवार को भू-बैकुंठ धाम बदरी विशाल के कपाट शीतकाल के लिए अपराह्न 3 बजकर 25 मिनट पर बंद कर दिए गए हैं। अब छह माह तक नारायण, लक्ष्मी के साथ गर्भगृह में विराजेंगे। भगवान की उत्सव डोली सोमवार को पांडुकेश्वर के लिए रवाना होगी। इसके बाद शीतकाल में पांडुकेश्वर स्थित योगध्यान बदरी मंदिर में ही श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर सकेंगे।
गंगोत्री, यमुनोत्री व केदारनाथ धाम के कपाट पहले ही बंद हो चुके हैं। रविवार को ब्रह्ममुहूर्त में मुख्य पुजारी रावल केशव प्रसाद नंबूदरी ने भगवान के कपाट बंदी की प्रक्रिया शुरू की। इसके तहत भगवान बदरीनाथ का महाभिषेक एवं अभिषेक पूजन कर फूलों से श्रृंगार किया गया। परंपरा के अनुसार भगवान का दालभोग, राजभोग आदि सभी पूजाएं संपन्न करने के उपरांत दोपहर बाद रावल केशव प्रसाद नंबूदरी ने इस वर्ष की अंतिम विशेष पूजाएं शुरू की। प्रथम चरण में उद्धव व कुबेर को गर्भगृह से बाहर लाया गया। इसके उपरांत मुख्य पुजारी रावल ने स्त्री वेष धारण कर महालक्ष्मी को गर्भगृह में नारायण के साथ यथास्थान विराजित किया गया। माणा की कन्याओं की बनायी ऊन की चोली में [घृत घी] का लेपन कर भगवान को ओढ़ाई गई। शीतकाल के दौरान यही एकमात्र वस्त्र अब भगवान की मूर्ति पर रहेगा। तत्पश्चात शुभ मुहूर्त के अनुसार 3 बजकर 25 मिनट पर कपाट बंद कर दिए गए। इस दौरान सोलह हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित किए।
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