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प्रार्थना की शक्ति

जब भी कोई व्यक्ति प्रार्थना के लिए अपने हाथ उठाता है, तब वास्तव में वह अपने भीतर की शक्ति को जगा रहा होता है। प्रार्थना से उसमें मुश्किलों का सामना करने का आत्मबल आता है। क्या कहती है प्रार्थना स्वयं अपने बारे में..?

By Edited By: Published: Mon, 15 Oct 2012 11:11 AM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2012 11:11 AM (IST)
प्रार्थना  की शक्ति

दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले

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कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को..।

मैँ हूं दुआ.. प्रार्थना.. प्रेयर..। मुझे जिसने अपने मन में बसाया, अपने सफर का साथी बनाया, मैं उसका साया बन गई। मैंने उसकी जिंदगी में तमाम फूल खिला दिए। मेरे चाहने वालों ने मुझे अपने कंठ में माला की तरह धारण कर लिया। किसी योगी की तरह।

इंसान ने जब से पंच-तत्वों की शक्ति को पहचाना, तभी से मेरा जन्म हुआ। प्रकृति के कोप से सुरक्षा के लिए हाथ उठे। आग, हवा, पानी का कहर थमा तो इंसान की आस्था बढ़ी कि जरूर कोई शक्ति है, जो सब कुछ नियंत्रित करती है। उसके ही अधीन सब हैं। मुझे नहीं मालूम कि वह शक्ति कहां है, कैसी है। वह निराकार है या साकार। मगर मैं इतना जरूर जानती हूं कि जिसने भी दिल से एक बार भगवान के आगे हाथ जोड़े, रब से खैर मांगी, उसकी जिंदगी में बदलाव की बयार बहने लगी। विज्ञान भी मेरी शक्ति को कुबूल कर चुका है। प्रयोगों में यह साबित हुआ कि प्रार्थना से एक नई सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। बताती हूं कि आखिर मैं कैसे बुरे हालात में इंसान के काम आती हूं?

असल में जब भी कोई प्रार्थना के लिए हाथ उठाता या जोड़ता है या अपना शीश नवाता है, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर या देवता के सामने ध्यान लगाकर दुखों से छुटकारे की कामना करता है, वह एक तरीके से खुद को ही अंदरूनी तौर पर हालात से निपटने के लिए तैयार करता है। मेरी वजह से उसके अंदर एक विश्वास पैदा होने लगता है। उसे लगता है कि अब उसकी जिंदगी से विपत्तियां टल जाएंगी। उसका अच्छा वक्त शुरू हो जाएगा। ऐसा सोचते ही उसे अपने भीतर एक नई आध्यात्मिक शक्ति आत्मबल का अहसास होता है। यह सकारात्मक भावना उसमें वक्त और हालात से लड़ने की नई शक्ति देती है और वह संयम और धैर्य से बिगड़े हालात से लोहा लेने चल पड़ता है। जिंदगी के संघर्ष में हौसले से कूद पड़ता है। मैं यह तो नहीं कह सकती कि प्रार्थना करने वाले को अदृश्य शक्ति से कोई मदद मिलती है या नहीं, लेकिन उसमें जो परिवर्तन आता है, वह उसे जिंदगी की जंग के लिए तैयार कर देता है। किसी ने कहा है :

कश्ती रवां-गवां है इशारा है नाखुदा

तूफान में कश्ती का सहारा है नाखुदा

अर्थात कश्ती अगर तूफान के भंवर में फंस जाती है, तो एकमात्र सहारा मल्लाह ही होता है। असल में हमारी जिंदगी हालात के भंवर में हिचकोले खाती एक कश्ती (नाव) ही तो है, जिसके नाखुदा (मल्लाह) हम ही हैं। हौसला है तो हम लहरों से पार पा जाते हैं। भंवर से निकल जाते हैं, लेकिन हममें साहस नहीं तो फिर डूबना तय है। मैं साहस देकर डूबने से बचाती हूं।

कोई मंगलवार को हनुमान के दर्शन को जाता है, कोई गुरुवार को खानाख्वाहों में मत्था टेकता है, कोई रविवार को चर्च में प्रभु के आगे प्रेयर कर सुकून पाता है। बेशक मेरे तरीके हर धर्म-संप्रदाय में अलग-अलग हैं, मगर मेरा फलसफा बस एक ही है- भले की कामना।

प्रार्थना अपने लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी होती है। प्रार्थना सार्वभौमिक है। संपूर्ण सृष्टि के लिए है। जापान की सुनामी के लिए हमारे देश और दुनिया में कितनी प्रार्थना सभाएं हुईं। मदद देने के साथ मेरा भी सहारा लिया गया। सच तो यह है कि इंसानों की भी अपनी सीमा है। कितने लोग ऐसे हैं, जो बुरे हालात में भले ही किसी की मदद न कर सकते हों, लेकिन मेरी शरण में आकर उनके अच्छे की कामना तो कर ही सकते हैं। जीवन की हर परीक्षा में मैं अपने चाहने वालों के साथ रहती हूं।

प्रभु ईसा मसीह के अनुयायी मेरी चंगाई सभाओं में भी बहुत विश्वास रखते हैं। चंगाई सभा में मंच से फादर प्रभु के आज्जन की प्रार्थना करते हैं। ऐसी सभाओं में चलने-फिरने में असमर्थ लोग चलने-फिरने लायक होने का दावा करते हैं। पलों में प्रार्थना से घटने वाला यह चमत्कार लोगों की मुझमें आस्था तो बढ़ाता ही है, उन्हें अभिभूत भी कर देता है। चंगे होकर लोग घर लौटते हैं और मेरे महत्व की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं।

आज दुनिया में कितने लोग हैं, जिन्हें फरिश्तों की तरह माना जाता है। दरअसल, जिन लोगों ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा और प्रभु की प्रार्थना में लगा दिया, उनकी दुआ जरूर कुबूल होती है। वे चाहे जिसके लिए भी मेरी मदद लें। मेरे जरिये मदद के लिए इंसान का नेक अमल होना जरूरी है। उसके इरादे और नीयत साफ होनी चाहिए। अगर किसी के बुरे के लिए इंसान हाथ उठाएगा, तो वह दुआ कहां होगी? वह तो बद्दुआ बन जाएगी। मैं पाखंडी, स्वार्थी और दूसरों का बुरा चाहने वालों को स्वीकार नहीं करती।

कहते हैं कि जब कुछ नहीं होता तो सिर्फ प्रार्थना होती है। कितनी बार इंसान ऐसे हालात में घिर जाता है, जहां मदद भी काम नहीं आती। तब मैं ही काम आती हूं। बड़े से बड़ा डॉक्टर भी जब किसी का इलाज करके हार जाता है, तो वह भी कहता है कि अब दवा के साथ दुआ की भी जरूरत है। इस्लाम में कहा गया है कि जब तक सांस चल रही है, इंसान अपने गुनाहों की माफी दुआ से मांग सकता है, मगर दुनिया से जाने के बाद व्यक्ति न तो दुआ कर सकता है न ही अपने गुनाहों की माफी मांग सकता है। उसकी आत्मा की शांति के लिए दूसरे लोग ही प्रार्थना कर सकते हैं।

भले ही अलग-अलग धर्मो में प्रार्थना के लिए अलग तरीका बताया गया हो, मगर सबका सार यही है कि हे प्रभु, अब तू ही मुझे हालात से निपटने की शक्ति देगा। मैं यही कहती हूं कि बस अच्छा सोचो, अच्छा करो और आगे बढ़ो। हालात से निराश मत हो। सकारात्मक रहो।

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