Move to Jagran APP

याद कलेंडर

<p>जनवरी सदिंयों के लिहाफ से चुपके निकलता है सूरज कुछ चहलकदमी करके, वापस लौट जाता है यादों को लौटने का हुनर क्यों नहीं आता.. </p>

By Edited By: Published: Mon, 31 Dec 2012 04:42 PM (IST)Updated: Mon, 31 Dec 2012 04:42 PM (IST)
याद कलेंडर

जनवरी

loksabha election banner

सदिंयों के लिहाफ से चुपके निकलता है सूरज

कुछ चहलकदमी करके, वापस लौट जाता है

यादों को लौटने का हुनर क्यों

नहीं आता..

फरवरी

सुर्ख फूलों की क्यारियां

बच्चों की हंसी की खुशबू

तेरी याद सी मासूम..

मार्च

धरती ने पहनी धानी चूनर

लगाया अमराइयों का इत्र

और तेरी याद का काजल..

अप्रैल

झर गयी है स्मृतियां

खाली पडे हैं आंखों के कोटर

नये भेष में आई है याद इंतजार बनकर..

मई

हांफते दिनों का हाथ थाम

रात तक बचा ही लेता हूं

आंख की नमी.. तुम्हारी कमी...

जून

गुलमोहर और अमलताश

कुदरत के दो रंग दो राग

तीसरा तुम्हारी याद..

जुलाई

बूदों की ओढनी

मोहब्बत का राग

और तुम्हारा नाम..

अगस्त

दिन की किनारी पर बंधे

दिन.. रात..

और तुम्हारे कदमों की आहट

सितंबर

लाल आकाश पर समंदर की परछाई

रात के माथे पर उगते सूरज की तरह

जैसे तूने जोर से फूंका हो रात को..

अक्टूबर

वक्त की शाख से उतरकर

कंधे पर आ बैठे हैं

सारे मौसम..

नवम्बर

न जाने कितने लिबास बदलने लगा है दिन

शाम सजनी है किसी दुल्हन की तरह तेरा जिक्र करता है करिश्मे क्या-क्या..

दिसम्बर

मीर की गजलों का सिरहाना बनाकर

धूप में बैठकर सुनती हूं

तेरे कदमों की आहट..

अजीम प्रेमजी फाउंडेशन इंस्टीच्यूट.

26, बलवीर रोड, देना बैंक के पास, देहरादून-248001


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.