जीवन का संगीत
मिजोरम में बांस के सहारे किया जाने वाला बैंबू डांस आध्यात्मिक महत्व का नृत्य है। इसमें हमारे जीवन के प्रति संदेश छिपा हुआ है..
उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम का प्रसिद्ध लोक नृत्य बैंबू डांस वर्षो से मिजोरम की संस्कृति का अंग रहा है। मान्यता है कि प्राचीन काल में यह नृत्य उन महिलाओं की याद में किया जाता था, जिनकी मृत्यु प्रसव के दौरान हो जाती थी। मूलत: यह आध्यात्मिक महत्व का नृत्य है, परंतु इन दिनों यह नृत्य मिजो-नागा युवाओं के उत्साह-उमंग तथा कला-संस्कृति के लिए जाना जाता है।
इस नृत्य में पुरुष कलाकार बांस के डंडों पर घुंघरू बांधकर संगीत की लय और ताल के साथ डंडों को एक विशेष तरीके से बजाते हैं। दोनों हाथों से, जमीन पर रखे बांस के डंडों पर पटक कर ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं हिलाया जाता है, जिससे विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। महिला नर्तक इन बांस के डंडों से उत्पन्न संगीत के साथ नृत्य करती हैं। तेजी से हिलते हुए बांस के डंडों के साथ नृत्य करने के लिए सही ताल-मेल की जरूरत होती है, जो लंबे समय के अभ्यास के बाद ही आ सकता है। यदि इसमें जरा सी भी चूक हुई, तो महिला नर्तक का पांव बांस से टकरा सकता है जिससे वह गिर कर चोटिल हो सकती है। लेकिन लगातार अभ्यास एवं उचित तालमेल से नर्तकियां बगैर बांस की तरफ देखे नृत्य करती हैं। बैंबू नृत्य-संगीत एवं हमारे जीवन के संगीत में बहुत समानता है। जीवन का भी एक विशेष संगीत होता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के संगीत के साथ तालमेल बिठाना होता है। जीवन के संगीत के अनेक आयाम हैं। इस संगीत की अपनी गति है, धुन है, स्वर है, बोल है, लय है और ताल है। प्रत्येक मनुष्य को इस संगीत को आदर देते हुए इसके साथ सामंजस्य बिठाना होता है। जरा सी भी चूक होने पर मनुष्य गिर सकता है तथा चोट खा सकता है।
जीवन के संगीत की अनेक धुनें हैं। आध्यात्मिक ज्ञान, मानवीय गुण, नैतिक मूल्य, सकारात्मक सोच, परहित भावना आदि कुछ धुनें हैं, जिसे मनुष्य को हमेशा याद रखके गुनगुनाना होता है, अन्यथा उसका पांव अवगुणों एवं अज्ञानता के भंवर में फंस सकता है तथा वह बुराइयों के गर्त में गिर सकता है। जीवन के संगीत की आवाज अत्यंत धीमी होती है। यह आवाज उन्हीं को सुनाई देती है जो कि इसे सुनने का प्रयत्न करते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह की तीक्ष्ण एवं तीव्र आवाजों के बीच जीवन का मधुर संगीत अक्सर दबकर रह जाता है तथा हम इसे सुन नहीं पाते हैं। जीवन के संगीत का प्रतिबिंब भी बहुत धुंधला होता है। अक्सर मन में भौतिकतावादी सोच एवं आंखों में बंधी लालच और स्वार्थ की पट्टी की वजह से हम इस संगीत को पहचानने में खुद को असमर्थ पाते हैं। इस संगीत को सुनने-समझने के लिए मनुष्य को स्वयं को मिजो नर्तकों की भांति प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इसके लिए एकाग्रता के साथ मन, शरीर और इंद्रियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार मिजोरम की नृत्य-बालाएं निरंतर अभ्यास से बांस के संगीत के साथ बेहतरीन तालमेल बिठाकर अपने नृत्य को कला की ऊंचाइयों तक ले जाती हैं, उसी प्रकार मनुष्य भी मन और इंद्रियों के प्रशिक्षण से अपने जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में प्रयत्नशील रह सकता है। एकाग्रचित मन व निरंतर अभ्यास के माध्यम से मनुष्य जीवन के मधुर संगीत को न केवल सुन और देख सकता है, अपितु इसे महसूस भी कर सकता है। जीवन के मधुर संगीत की स्वर लहरियों के साथ तालमेल बिठा कर हम जीवन जीने की अनूठी एवं कठिन कला में माहिर हो सकते हैं।
जीवन का यह आनन्दमय संगीत हमें आशा और विश्वास का संदेश देता है तथा सार्थक जीवन जीने की दिशा प्रदान करता है। मानवता और प्यार की बोली सिखाता है। यह हमें हमारे लक्ष्य के प्रति जागृत करता है। अपनी मधुरता प्रवाह से मन में जमी अज्ञानता की काई को धो डालता है।
अत: एक सार्थक, रचनात्मक एवं ध्ययेपूर्ण जीवन जीने के लिए इस संगीत को सुनने, समझने एवं इसके साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करते रहें।
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