फाल्गुनी कांवड़ में आधुनिकता के रंग
जमाना हाईटेक हो रहा है तो आस्थाएं भी इससे अछूती नहीं है। फाल्गुनी कांवड़ में परंपरा के साथ आधुनिकता का समावेश भी है। फाल्गुनी कांवड़ में पहले बेहद कम कांवडि़ए आते थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ रही है। फटाफट संस्कृति भी कांवड़ पर हावी हुई है। बुजुर्गो की अपेक्षा युवा ज्यादा पहुंच रहे हैं।
हरिद्वार, जागरण संवाददाता। जमाना हाईटेक हो रहा है तो आस्थाएं भी इससे अछूती नहीं है। फाल्गुनी कांवड़ में परंपरा के साथ आधुनिकता का समावेश भी है। फाल्गुनी कांवड़ में पहले बेहद कम कांवडि़ए आते थे, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ रही है। फटाफट संस्कृति भी कांवड़ पर हावी हुई है। बुजुर्गो की अपेक्षा युवा ज्यादा पहुंच रहे हैं। श्रावण व फाल्गुन मास साल में दो बार कांवड़ यात्रा होती है। श्रावण मास की यात्रा का धार्मिक महत्व ज्यादा माना जाता है, कांवडि़यों की संख्या एक करोड़ तक पहुंच गई। अलबत्ता, फाल्गुनी कांवड़ में पहले बहुत कम कांवडि़ए पहुंचते थे। लेकिन धीरे-धीरे इसका क्रेज भी शिव भक्तों के सिर चढ़ रहा है। इस बार आठ लाख से ज्यादा शिवभक्तों के आने का अनुमान प्रशासन की ओर से लगाया गया है। अब तक की परंपरा में कांवडि़ए भगवा वस्त्रों में आते थे। समय के साथ आधुनिक परिधानों में कांवडि़ए आने लगे हैं। एक दशक पहले तक गांव देहात के बुजुर्ग किसान ही फाल्गुनी कांवड़ के लिए पहुंचते थे। अब अस्सी प्रतिशत युवा कांवड़ लेने के लिए पहुंच रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है। श्रावण मास की कांवड़ यात्रा के आखिरी दिनों में डाक कांवड़ पहुंची है। फाल्गुन कांवड़ में भी डाक कांवड़ की फटाफट संस्कृति नजर आने लगी है। फाल्गुनी कांवड़ में बिजनौर, मुजफ्फरनगर, नजीबाबाद आदि क्षेत्रों से कांवडि़ए पहुंचते हैं। जबकि श्रावण मास में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बुलंदशहर, पश्चिम यूपी से ज्यादा कांवडि़ए आते हैं। फाल्गुनी कांवड़ में अब तक कांवडि़यों की संख्या कम रहती थी। इसलिए प्रशासनिक दृष्टिकोण से इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता है। हर बार शिवरात्रि से एक दिन पहले व शिवरात्रि के दिन तक व्यवस्था की जाती है। इस बार भी 19 फरवरी की शाम चार बजे से 20 फरवरी की शाम तक के लिए तैयारी की गई है। एडीएम प्रशासन को कानूनी व्यवस्था की जिम्मेदारी दी गई है। -फाल्गुनी कांवड़ का स्वरूप बदला है। पहले कुछ लोग ही इस मास में पहुंचते थे। बुजुर्गो की संख्या ज्यादा होती थी। लेकिन अब लोग ज्यादा संख्या में आ रहे हैं और इनमें युवा ज्यादा है। -राम कुमार मिश्रा, वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित
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