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हर प्रसंग करे जीवंत श्रीकृष्ण संग्रहालय

धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र जहां महाभारत के कारण प्रसिद्ध है, वहीं दुनिया को गीता का ज्ञान भी इसी धरा से मिला है। लोगों को महाभारत व सुदर्शनचक्रधारी श्रीकृष्ण की लीलाओं को ज्ञानने की जिज्ञासा रहती है। इन जिज्ञासाओं को शांत करते हुए कुरुक्षेत्र में स्थित श्रीकृष्ण संग्रहालय हर प्रसंग को जीवंत करता है।

By Edited By: Published: Mon, 16 Jul 2012 01:51 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2012 01:51 PM (IST)
हर प्रसंग करे जीवंत श्रीकृष्ण संग्रहालय

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाराजा कुरु ने 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि में सोने का हल चलाकर यहां आध्यात्मिक चिंतन का बीज बोया था। धर्म से जुड़े होने के कारण यह क्षेत्र धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र कहलाया। 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, जींद एवं पानीपत पांच जिलों में फैली हुई है। महाभारत का जिक्र होते ही भयंकर युद्ध का दृश्य जीवंत हो उठता है। हालांकि इस बात को भुला दिया जाता है कि इस युद्ध के दौरान दुनिया को गीता का ज्ञान मिला और धर्म व कर्म की महता का आभास हुआ।

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कुरुक्षेत्र आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं को अक्सर महाभारत व श्रीकृष्ण से जुड़े प्रसंगों व घटनाओं को जानने की जिज्ञासा होती है। कुरुक्षेत्र में स्थित श्रीकृष्ण संग्रहालय न केवल उन जिज्ञासाओं को शांत करता है बल्कि हर प्रसंग को जीवंत करने में भी सक्षम है। वैसे तो कुरुक्षेत्र में पग-पग पर धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल हैं लेकिन जो श्रीकृष्ण संग्रहालय में आता है, वह इसी के रंग में रंगा जाता है। संग्रहालय में प्रवेश करते ही मानचित्र पर 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि के दर्शन होते हैं। दरअसल इसमें विभिन्न तीर्थो को दर्शाया गया है। इसके बाद वंशावली के माध्यम से पुरु और यदुवंश की जानकारी मिलती है।

मुरलीधर श्रीकृष्ण के विचारों व आदर्शो से लोगों को अवगत करवाने एवं कुरुक्षेत्र के इतिहास की जानकारी करवाने के उद्देश्य से वर्ष 1987 में श्रीकृष्ण संग्रहालय की स्थापना की गई। वर्ष 1991 में इसे संग्रहालय के वर्तमान प्रथम खंड में स्थानांतरित किया गया। वर्ष 1995 में दूसरे तथा वर्ष 2012 में तीसरा खंड जोड़ा गया। वर्तमान में श्रीकृष्ण संग्रहालय तीन खंडों की नौ गैलरियों में विस्तृत है। संग्रहालय में प्रदर्शित कृतियों में श्रीकृष्ण को देवता, विष्णु के अवतार, महान दार्शनिक, महाकाव्य के महानायक, सिद्ध राजनीतिज्ञ एवं आराध्य के रूप में चित्रित किया गया है। श्रीकृष्ण की लोक लुभावनी एवं विस्मयकारी लीलाएं संपूर्ण देश के कला एवं शिल्प जगत के लिए सतत् प्रेरणा का स्रोत रही हैं।

संग्रहालय की प्रथम गैलरी में प्रवेश करते ही काष्ठ की भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति के दर्शन होते हैं। कृष्ण कथा पर आधारित विभिन्न कालों एवं शैलियों में धातु निर्मित मूर्तियों के अलावा काष्ठ एवं हाथीदांत पर भी उनकी लीलाएं उत्कीर्ण हैं। इस गैलरी में उड़ीसा, तमिलनाडु व आंध्रप्रदेश से प्राप्त काष्ठ मूर्ति शिल्प का बड़ा संग्रह प्रदर्शित है। संग्रहालय की दूसरी गैलरी में कुरुक्षेत्र भूमि तथा हरियाणा के आद्य ऐतिहासिक काल के पुरातात्विक स्थल जैसे कुणाल व बनावली आदि से प्राप्त सामग्री की प्रतिकृतियां व मृदभांड, द्वारिका से प्राप्त पुरावशेष, विष्णु-कृष्ण कथा पर आधारित हरियाणा के अनेक भागों तथा मथुरा से मिली प्रस्तर मूर्तियों का संग्रह है। तीसरी गैलरी में मुख्य रूप से लघु चित्र, ताड़पत्रों पर बने चित्र, भगवद्गीता, महाभारत और भागवत की पांडुलिपियां आकर्षित करती हैं। संग्रहालय की चौथी गैलरी में प्रवेश करते ही आंध्रप्रदेश की चर्म कठपुतलियों को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। भीष्म महाभारत काल के असाधारण व्यक्तित्व हैं। उनकी पर्वत शिखर जैसी ऊंची नैतिकता, अनुपम ज्ञान और वीरता आने वाली पीढि़यों के लिए सतत् प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। मानव जीवन में इन्हीं मूल्यों का महत्व प्रदर्शित करने के उद्देश्य से इस संग्रहालय में भीष्म शरशय्या के प्रसंग को दर्शाया गया है। इसी कड़ी में वीर अभिमन्यु के वध की झांकी भी प्रदर्शित की गई है। पांचवीं गैलरी में कागज पर बनी मधुबनी चित्रकला अनायास ही आकृष्ट करती है। इन चित्रों में श्रीकृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक के प्रमुख प्रसंगों का चित्रण है। संग्रहालय की छठी गैलरी में श्रीकृष्ण कथा पर आधारित झांकियां मन मोह लेती हैं। नवजात श्रीकृष्ण को यमुना पार ले जाते वासुदेव, सखाओं संग माखन चोरी करते बाल कृष्ण एवं बकासुर का वध करते श्रीकृष्ण को दिखाया गया है। इसके बाद गोवर्धन पर्वत धारण करते श्रीकृष्ण, कालिया नाग का मान मर्दन, रासलीला, कंस वध, सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में राधा-कृष्ण मिलन तथा कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता संदेश का मनोहारी चित्रण है।

संग्रहालय की सातवीं गैलरी में प्रवेश करते ही महाभारत की रचना का घटनाक्रम जीवंत हो उठता है। वास्तव में महाभारत की शुरूआत गंगा के किनारे से ही हुई थी। एक बेहद सुंदर झांकी में कुरु प्रदेश के राजा शांतनु को गंगा के साथ दिखाया गया है। भीष्म को प्रतिज्ञा लेते हुए बनाई गई झांकी भी दर्शनीय है। यहीं एक चित्र में भीष्म अंबा, अंबिका व अंबालिका का हरण करके ले जाते हुए दिखाए गए हैं। ध्वनि और प्रकाश के संयोजन से कुछ पल में माया महल प्रकट होता है। इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो इन्सान किसी जादुई दुनिया में प्रवेश कर गया हो। आठवीं गैलरी में यक्ष और युधिष्ठिर के मध्य हुए संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तरी में शामिल होकर पर्यटक रोचक जानकारी हासिल कर सकते हैं। गीता उपदेश यहां पर 11 मिनट के शो के माध्यम से दिखाया जाता है, इसमें भगवान कृष्ण के विराट रूप के दर्शन भी होते हैं।

महाभारत में वीर अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर मारा गया था। चक्रव्यूह की रचना का एहसास नौंवी गैलरी में बने चक्रव्यूह में जाकर किया जा सकता है। अंतिम दो चित्रों में दिखाया गया है कि पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं। केवल युधिष्ठिर ही कुत्ते के साथ स्वर्ग में पहुंच पाते हैं। यहां से बाहर निकलते ही ऐसा लगता है जैसे अद्भुत लोक से पृथ्वी पर वापस आ गए हों।

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