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आंदोलनों का स्वरूप तय नहीं कर पाई विहिप

दो दिन तक चली विश्व हिंदू परिषद हाई पॉवर कमेटी की बैठक में ठोस कुछ नहीं निकल पाया। राम मंदिर के मुद्दे पर पुराने संकल्प दोहराए गए। गं

By Edited By: Published: Thu, 21 Jun 2012 12:37 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2012 12:37 PM (IST)
आंदोलनों का स्वरूप तय नहीं कर पाई विहिप

हरिद्वार। दो दिन तक चली विश्व हिंदू परिषद हाई पॉवर कमेटी की बैठक में ठोस कुछ नहीं निकल पाया। राम मंदिर के मुद्दे पर पुराने संकल्प दोहराए गए। गंगा की अविरलता-निर्मलता से अधिक चिंता इस मुद्दे के दूसरे संतों के हाथ में जाने की दिखाई दी। इसीलिए निशाने पर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती रहे। राम मंदिर व गंगा पर जन आंदोलनों की बात तो हुई लेकिन विहिप उसका स्वरूप तय नहीं कर पाई।

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विश्व हिंदू परिषद संत उच्चाधिकार समिति (हाई पावर कमेटी) की कनखल में हुई दो दिनों की बैठक में राम के साथ गंगा के मुद्दे को उछाला गया। राम मंदिर के मामले में विहिप के पास ज्यादा भूमिका नहीं बची है और गंगा को लेकर जो आंदोलन चल रहे हैं उसमें विहिप व उससे जुड़े संत प्रमुखता से नहीं दिखाई दे रहे। अत: दो दिनों की चर्चा के बाद जो तीन प्रस्ताव पारित किए गए उसमें ठोस कुछ नहीं निकला। राम मंदिर के मामले में समिति ने पूर्व में लिए गए चार संकल्पों को ही दोहराया। इसमें अयोध्या के सांस्कृतिक स्वरूप की सदैव रक्षा करना, भव्य राम मंदिर निर्माण, अयोध्या में रखे गए पत्थरों से मंदिर बनाने और श्रीराम जन्मभूमि न्यास की ओर से मंदिर बनाने की बात है। प्रयाग कुंभ से पहले, कुंभ के दौरान व उसके बाद जनजागरण व आंदोलन की बात कही गई लेकिन आंदोलन का स्वरूप क्या होगा यह तय नहीं हो पाया। गंगा के मुद्दे पर प्रस्ताव हरिद्वार के संतों ने ही रखे। महामंडलेश्वर हरिचेतनानंद महाराज के प्रस्ताव का अनुमोदन पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने किया लेकिन इस प्रस्ताव में भी कुछ नया नहीं रहा। लोहारीनाग-पाला परियोजना रोकने का श्रेय विहिप ने लिया। विहिप नेता प्रवीण तोगडि़या के तेवर पहले जैसे तल्ख नहीं रहे। अलबत्ता राम मंदिर आंदोलन से जुड़े स्वामी चिन्मयानंद ज्यादा आक्रामक दिखे। गंगा का मुद्दा हाथ से फिसलने को लेकर उनकी चिंता दिखी। इसलिए निशाने पर सीधे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती रहे। स्वामी स्वरूपानंद पर राम मंदिर आंदोलन व अन्य आंदोलनों को कमजोर करने की तोहमत लगाने के साथ ही उनके जंतर-मंतर पर बैठने और केंद्र को तीन माह की मोहलत पर सवाल खड़े किए गए।

विहिप को अब प्रयाग कुंभ से आस

जनाधार को बढ़ा पुराने प्रभाव को पाने की चेष्टा में लगी विहिप को अब प्रयाग महाकुंभ का इंतजार है। विहिप कुंभ के दौरान आंदोलन की घोषणा पर विचार कर रही है। हाई-पॉवर कमेटी के पहले और दूसरे दिन जनांदोलनों को लेकर हुई चर्चा में यही मुद्दा छाया रहा। यही वजह है कि धर्म संसद और संत सम्मेलन के लिए भी विहिप ने कुंभ का ही समय चुना है। यही नहीं गंगा रक्षा और राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार को दिए अल्टीमेटम के बाद आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए भी प्रयाग महाकुंभ को ही मुफीद माना गया।

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