विश्वास से जीतें जग
नव के जीवन में अगाध शक्तियां कार्य करती हैं। शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक। ये तीन प्रमुख शक्तियां संपूर्ण विकास में सहायक हो सकती हैं।
नव के जीवन में अगाध शक्तियां कार्य करती हैं। शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक। ये तीन प्रमुख शक्तियां संपूर्ण विकास में सहायक हो सकती हैं। लेकिन तभी, जब मनुष्य के अंत:करण में अगाध विश्वास हो। सिर्फ ईश्वर पर ही नहीं, अपने आप पर भी। यह समस्त जगत विश्वास पर ही टिका है। जो यह विश्वास करते हैं कि कोई शक्ति है, जिसे हमने ईश्वर नाम दिया है या जो यह विश्वास करते हैं कि ईश्वर उसी रूप में है, जिसे उन्होंने मूर्तियों व चित्रों में देखा है, वे सच में इसी विश्वास के सहारे अपना आध्यात्मिक और नैतिक विकास करते हैं। ईश्वर की प्राप्ति में गहन विश्वास ही प्रेरक रूप में कार्य करता है। पत्थर की मूर्तियों में केवल विश्वास ही तो है, जिसमे आप उस ईश्वर के विभिन्न रूपों को देख पाते हैं।
सिर्फ आध्यात्मिक लोगों की ही नहीं, वैज्ञानिकों की भी बड़ी से बड़ी खोजें विश्वास पर ही टिकी हुई हैं। शून्य से शिखर तक पहुंचे ऐसे कई व्यापारी हुए हैं, जिनके पास पूंजी न होते हुए भी वे अपनी क्षमताओं पर विश्वास के सहारे ऊंचाइयों तक पहुंचे। एवरेस्ट की चोटियों का स्पर्श करने वालों को भी स्वयं पर विश्वास होता है। जो विश्वास से लबरेज रहते हैं, उन्हें कठिनाइयां, बाधाएं या विपत्तियां न तो डरा पाती हैं, न डिगा पाती हैं। इसके विपरीत विषमताओं मे वे दोगुने वेग से खडे़ होते हैं।
स्मरण रखिए, शक्तियां आपके भीतर बीज रूप मे विद्यमान हैं। आवश्यकता है तो बस उन्हें जाग्रत करने की और जीवन के प्रति गहन विश्वास पैदा करने की। विश्वास उत्पन्न होते ही ये शक्तियां भी सक्त्रिय हो जाती हैं। विश्वास से पूर्ण व्यक्ति के जीवन में तीन तत्व प्रमुख रूप से कार्य करते हैं- संकल्प, साहस और विजय। विश्वास के सहारे वह संकल्प लेता है और साहस के साथ परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करता है।
कौरव और पांडव दोनों के समक्ष ही तो ईश्वर थे, किंतु दुर्योधन तो सामने खडे़ श्रीकृष्ण की परमसत्ता को नकारता रहा और अर्जुन उस परमात्मा के अनंत रूपों के दर्शन करते रहे। श्रीकृष्ण ही अपने भक्त अर्जुन के सबसे प्रमुख सहायक बने और उन्हीं के कारण ही पांडवों को युद्ध में विजयश्री की प्राप्त हुई। मूल में एक ही बात सामने आती है और वह है विश्वास। जिन्हें ईश्वर पर विश्वास होता है, वे ही अपने आप पर विश्वास कर सकते हैं। जिन्हें अपने आप पर विश्वास नहीं होता, वे ईश्वर पर भी विश्वास नहीं कर पाते। रामचरितमानस में श्रीराम अपने भक्तों से कहते हैं, जो मुझ पर विश्वास रखते हैं, मैं उनकी रक्षा माता के समान करता हूं- करउं सदा तिनकी रखवारी, जिमि बालक राखहि महतारी.।
आज का जीवन बहुत जटिल है। जहां चारों ओर विकास के बहुत रास्ते हैं, वहीं बहुत सी विपरीत परिस्थितियां आपके चारों तरफ होती हैं- कार्यालय में, आपके समाज में और आपके घर में। ये विपरीत परिस्थितियां आपके विश्वास को पूरी तरह तोड़ने के लिए पर्याप्त होती हैं। लेकिन स्मरण रहे, जीवन की कठिन परिस्थितियां एक चुनौती भर हैं, न कि विपत्ति। जीवन में चाहे चारों ओर कष्ट के बादल छाये हों, चाहे जैसी भीषण परिस्थितियां हों, विश्वास को डगमगाने मत दीजिए। यदि आपमें विश्वास है, तो इन परिस्थितियों से बाहर निकलने की आपमें शक्ति स्वत: आ जाएगी। यह वही शक्ति है, जो आपके भीतर ही विद्यमान थी। स्वामी विवेकानंद के शब्दों में- इस जगत का इतिहास कुछ ऐसे लोगों का इतिहास है, जिन्हें अपने आपमें विश्वास था। ज्यों ही कोई व्यक्ति अपने आप में विश्वास खो बैठता है, उसी क्षण उसे मृत्यु आकर दबोच लेती है। पहले अपने आप पर विश्वास करो, फिर ईश्वर पर।
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