Move to Jagran APP

जाग्रत हुए शिव तो नाम पड़ा जागेश्वर

मा वैद्यनाथ मनुषा व्रजंतु, काशीपुरी शंकर बल्ल्भावां। मायानगयां मनुजा न यान्तु, जागीश्वराख्यं तू हरं व्रजन्तु। अर्थात मनुष्य वैद्यनाथ न जा पावे, शंकर प्रिय काशी, मायानगरी [हरिद्वार] भी न जा सके तो जागेश्वर धाम में शिवदर्शन अवश्य करना चाहिए।

By Edited By: Published: Sat, 21 Jul 2012 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2012 10:48 AM (IST)
जाग्रत हुए शिव तो नाम पड़ा जागेश्वर

जागेश्वर [अल्मोड़ा]। मा वैद्यनाथ मनुषा व्रजंतु, काशीपुरी शंकर बल्ल्भावां। मायानगयां मनुजा न यान्तु, जागीश्वराख्यं तू हरं व्रजन्तु। अर्थात मनुष्य वैद्यनाथ न जा पावे, शंकर प्रिय काशी, मायानगरी [हरिद्वार] भी न जा सके तो जागेश्वर धाम में शिवदर्शन अवश्य करना चाहिए। मान्यता है कि सुर, नर, मुनि से सेवित हो देवाधिदेव जाग्रत हुए तो यहां का नाम जगेश्वर पड़ा। तभी इसे द्वादश ज्योतिर्लिग की ख्याति भी प्राप्त है।

loksabha election banner

पहाड़ में श्रावण माह के सोमवार को भगवान शिव की विशेष आराधना की जाती है। परम पावन धाम जागेश्वर लिंग रूप में शिव पूजन का प्रथम स्थान है। हालांकि श्रावण मास 3 जुलाई से लगा गया, लेकिन पहाड़ में इसकी शुरुआत पहले सोमवार से हुई। जागेश्वर धाम समुद्र तल से 1860 मीटर उंचाई पर स्थित महादेव का यह धाम चारों ओर देववृक्ष देवदार से घिरा है। मुख्य मंदिर परिसर में 125 प्राचीन मंदिर स्थापित हैं। इनमें 108 मंदिर भगवान शिव जबकि 17 मंदिर अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। महामृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि देवी व कुबेर के मंदिरों को मुख्य मंदिर माना जाता है। पुरातत्वविदों के अनुसार मंदिरों का निर्माण 7वीं से 14वीं सदी में हुआ था। इस काल को पूर्व कत्यूरी काल, उत्तर कत्यूरी व चंद तीन कालों में विभक्त किया गया है। सुर, नर, मुनि द्वार पूजित जाग्रत शिव के पूजन से ही यहां का नाम जागेश्वर धाम पड़ा। स्कंद पुराण, लिंग पुराण मार्कण्डेय आदि पुराणों ने जागेश्वर की महिमा का बखूबी बखान किया है।

चार दिशाओं से घिरे जागेश्वर मंदिर समूह के पूर्व में कोटेश्वर, पश्चिम में डंडेश्वर, उत्तर में वृद्ध जागेश्वर व दक्षिण में झांकर सैम मंदिर स्थापित है।

रावण, मार्कण्डेय, पांडव व लव-कुश ने भी किया था शिव पूजन-

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्रों लव-कुश ने अपने पिता की सेना से युद्घ किया। राजा बनने के बाद वे यहां आऐ। उन्होंने अज्ञानतावश किए युद्ध के प्रायश्चित को यहां यज्ञ किया था। वह यज्ञ कुंड आज भी विद्यमान है। रावण, पांडव व मार्कण्डेय ऋषि जागेश्वर धाम में शिव पूजन का उल्लेख मिलता है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.