सितार की तरंगों से झंकृत हो उठा तपस्या स्थल
एक संकल्प को साकार करने का यह अनूठा प्रयास रहा, जिसे दिल की गहराइयों तक महसूस किया गया।
वाराणसी। एक संकल्प को साकार करने का यह अनूठा प्रयास रहा, जिसे दिल की गहराइयों तक महसूस किया गया। मंगलवार की शाम काशी के शंकराचार्य घाट पर दिन ढलने के साथ कलाकारों की जुटान शुरू हो गई थी। भारतीय संस्कृति की जीवनरेखा मां गंगा को अविरल-निर्मल बनाने के संकल्प के साथ जुटे 151 कलाकारों के हाथों में अलग-अलग वाद्य यंत्र रहे।
कोई सितार लेकर आया था तो कोई तबला। किसी के साथ में पखावज रहा तो कोई वायलिन संग मुस्तैद। कुछ कलाकारों के हाथों में भगवान श्रीकृष्ण का वाद्य यंत्र बांसुरी भी शोभित हो रहा था। सबका संकल्प एक था और लक्ष्य भी एक-अविरल- निर्मल गंगा। जैसे-जैसे दिन शाम की गोद में समाती गई, गंगा तट पर कलाकारों व गंगा सेवियों संख्या बढ़ती गई।
गंगा तपस्या अभियान के 151 दिन पूर्ण होने के मौके पर आयोजित सितार तपर्या में भाग लेने आए कलाकारों का उत्साह देखते ही बनता था। सायंकाल सूर्यास्त के बाद 7 बजाते ही गंगा तट सितार की तरंगों से झंकृत हो उठा। पंडित शिवनाथ मिश्र के निर्देशन में 108 कलाकारों ने सितार पर सधे अंदाज में राग देस की अवतारणा कर पूरे माहौल को भक्ति रस में डुबो दिया। इस दौरान 43 अन्य कलाकार तबला, वायलिन, बांसुरी व पखावज संभाल रखे थे। सितार से जब कलाकारों ने गंगा स्त्रोतम् के श्लोक देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे का धुन प्रस्फुटित किया तो लोग बरबस ये पंक्तियां गुनगुनाने लगे। संचालन पंडित देवब्रत मिश्र ने किया।
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