तीर्थराज पुष्कर
भारत में पुष्कर को तीर्थो का राजा कहा जाता है तो विदेशों में इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता का बेमिसाल नमूना।
भारत में पुष्कर को तीर्थो का राजा कहा जाता है तो विदेशों में इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता का बेमिसाल नमूना। राजस्थान में अजमेर के निकट पुष्कर झील और रेगिस्तानी मिट्टी पर ऊंटों का मेला सबको बराबर आकर्षित करते हैं। दौड लगाते ऊंट, साफा बांधते विदेशी और मूंछों को ताव देते राजस्थानी बांकुरों की तस्वीरें पुष्कर मेले को अलग ही छवि देती हैं। कहा जाता है कि पुष्कर में ही दुनिया में ब्रह्मा का एकमात्र मंदिर स्थित है। यहीं कार्तिक पूर्णिमा को हर साल पुष्कर मेला संपन्न होता है। मेला आठ दिन पहले शुरू हो जाता है। लोग पवित्र स्नान के लिए आते हैं और साथ में लगता है विशाल पशु मेला। मूल रूप से यह ऊंट मेला हुआ करता था, जो अब बाकी मवेशियों की खरीद-फरोख्त का भी स्थान बन गया है।
मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी बडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है। तीन ओर पहाडियों से घिरा पुष्कर एक मनोरम स्थान है। विशाल सरोवर के चारों ओर सीढीनुमा घाट बने हैं। इन घाटों पर कई जगह आकर्षक छतरियां और छोटे-छोटे मंदिर बने हैं। यहां कुल 52 घाट स्थित हैं। इनमें गऊ घाट, वाराह घाट, नृसिंह घाट एवं ब्रह्मा घाट प्रमुख हैं। घाट पर स्नान के बाद ही श्रद्धालु मंदिर में जाते हैं।
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