आदि शक्ति मां गायत्री
वेदमाता गायत्री सूर्य स्वरूपा कही गई हैं। ऐसा सूर्य, जो बाहृय नहीं, अंतर्मन को भी आलोकित कर दे। दूसरे शब्दों में गायत्री परमात्मा का ऐसा प्रतीक हैं, जिनकी उपासना से मन में सद्बुद्धि या विवेक को जन्म दिया जा सकता है।
वेदमाता गायत्री सूर्य स्वरूपा कही गई हैं। ऐसा सूर्य, जो बाहृय नहीं, अंतर्मन को भी आलोकित कर दे। दूसरे शब्दों में गायत्री परमात्मा का ऐसा प्रतीक हैं, जिनकी उपासना से मन में सद्बुद्धि या विवेक को जन्म दिया जा सकता है। यदि मनुष्य यह अनुभूत करने लगे कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं, तो सृष्टि का कौन सा पदार्थ उसके लिए दुर्लभ हो सकता है। इसी कारण गायत्री को कामधेनु या कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। ज्ञान की आदि श्चोत होने के कारण ही वे आदिमाता कही गई हैं। परमात्मा का मातृरूप उनमें प्रकट होने के कारण ही गायत्री को विश्वमाता कहा गया है। उनका कमंडल पवित्रता और माला साधना की प्रतीक है। आदि शक्ति मां गायत्री की विविध रूपों में उपासना की जाती है, जिनमें से कुछ निम्नवत हैं -
सरस्वती : विद्या एवं कला की प्रतीक मां सरस्वती संस्कृति की प्रतीक कही जाती हैं। उनके हाथों की वीणा कला से प्राप्त होने वाले असीम आनंद का प्रतीक है।
पार्वती : भगवान शिव की अद्र्र्धागिनी पार्वती उस तपश्चर्या का प्रतीक हैं, जिसके माध्यम से शिव अर्थात परमात्मा का प्रतीकात्मक सान्निध्य प्राप्त किया जा सकता है।
दुर्गा : असुरता के उन्मूलन के लिए विभिन्न देवताओं की शक्तियों के संगम से जन्मी दुर्गा संगठन शक्ति की अत्यंत सुंदर प्रतीक हैं।
लक्ष्मी : आदि शक्ति का लक्ष्मी स्वरूप परमात्मा के वैभव का प्रतीक है। यह देवताओं एवं दैत्यों दोनों को प्राप्त हो सकता है, शर्त मात्र समुद्र मंथन जैसे श्रम की है।
काली : अत्याचार की हर सीमा लांघ जाने के बाद सृजनकारी मां रौद्र रूप धारण कर काली का रूप धारण कर लेती हैं और अन्याय के कटे सिर उनके गले की शोभा बनते हैं।
(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)
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