अपनी-अपनी कामना, अपना-अपना कुंभ
हर आगत के स्वागत को फैलाए अपनी बाहें, रेतीले कुंभ नगर की राहें। किस ओर जाएं ्रअलग-अलग चेहरे, जुदा-जुदा चाहनाएं।
कुंभनगर [कुमार अजय]। हर आगत के स्वागत को फैलाए अपनी बाहें, रेतीले कुंभ नगर की राहें। किस ओर जाएं ्रअलग-अलग चेहरे, जुदा-जुदा चाहनाएं। श्रद्धा और आस्था के साथ जिंदगी की जरूरतें भी यहां भांति भांति की कामनाओं का रूप ले कर पूर्णत्व मांगती हैं। किसी को पुण्य के अलावा गंगा माई की किरपा से रोजी की बढ़ंती की आस। रोटी के लिए कुंभ भर पेट नहीं बांधना पड़ेगा किसी को है पक्का विश्वास। कोई इन सबसे अलग अपनी ड्यूटी बजा रहा है। कोई रंगीन स्वांग रच कर लोगों को चूना लगा रहा है।
हर मोड़ पर भांति-भांति के पात्र, सबके लिए कुंभ के अपने-अपने अर्थ, यह अर्थ थोड़ा सा गहरे झांकते ही बिना लाग लपेट समझ में आने लगता है-
जोड़-जोड़ कर आना पाई: पूरे बारह बरसों तक आना-पाई जोड़ कर जुटी रकम से कुंभ का पुण्य कमाने आया है देवास(मध्य प्रदेश) का चौरसिया परिवार। चादर पैर के उपर न चढ़ जाए इस एहतियात से बस एक बार ही अहरा(चूल्हा)बारते हैं। टेण्ट के लिए टेंट की गवाही नहीं मिलती सो पूस की सर्द रातें संगम बंधे के नीचे बनाए गए शिविर में ही गुजारते हैं। जबसे आए हैं बिना नागा संगम की धारा में डुबकी मार रहे हैं। इह लोक में जैसी बीती तैसी बीती। उहलोक का मार्ग संवार रहे हैं। दिहौ बढं़ती गंगा माई: इसी कातर प्रार्थना के साथ रात के तीसरे पहर ही भट्ठी दगा रहे हैं इलाहाबाद के असरावल कलां गांव से हलवाई की दुकान ले कर मेले आए भाई सुनिल केसरवानी। संगम मोड़ के थोड़ा पहले सजी केसरवानी जी के दुकान की खरी-खरी नमकीन कचौडि़यो और कड़ुआ तेल की करारी झाक वाली तरकारी का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। साथ में सुर्ख रंगत वाले कुरकुरे बे्रड पकौड़े भी गजब ढा रहे हैं। बस यूं समझिए कि ग्राहक बिन बुलाए खिंचे चले आ रहे हैं। संक्त्राति की दुकानदारी जोरदार रही। माई की कृपा से पूर्णिमा अमावस और पंचमी का मेला बस अइसे संभल जाय तो कुंभ सुवारथ होई जाय। गंउवा की दलनिया पक्की हुई जाए।
क्षेपक: स्वप्न भंग- (लौटानी के दौरान पता चलता है कि हमारी बातचीत के आधा घंटे बाद ही मेले के अधिकारियों ने सुनील की दुकान वहां से हटवा दी। कुंभ का एक स्वप्न भंग हो गया) फर्ज निभे और कर्ज भी उतरे: ऊपर आईजी और नीचे सिपाही जी के परम दायित्व बोध के साथ कुंभ मेले की ड्यूटी निभा रहे हैं यूपी पुलिस फोर्स के सिपाही दयानंद भाई। जर-जुगाड़ और सोर्स-फोर्स के सारे पासे आजमाने के बाद बलरामपुर से इलाहाबाद के लिए कुंभ में तैनाती करवाई है। रात भर पूरी निष्ठा से ड्यूटी बजाते हैं, सुबह-सुबह नेमीजन की तरह संगम में डुबकी लगाते हैं। एक तरफ फर्ज को अंजाम तो दूसरी तरफ मोह-माया के कर्ज को आखिरी सलाम। इससे ज्यादा और चाहिए भी क्या।
कैसे इस जंजाल से उबरें-बड़े जंजाल में डाल दिहिन साहब लोग. इस एक वाक्य में ही सारी पीड़ा और मन का क्षोभ उभर आता है घनश्याम गुरु का। फायर ब्रिगेड शिविर के सामने पंच सिपहिया निशान वाले तम्बू के बाहर चौकी पर बैठे जजमानों की बाट जोह रहे तीर्थ पुरोहित घनश्याम शर्मा को मलाल है कि प्रशासन ने इस बार तीर्थ पुरोहितों के साथ बड़ा अन्याय किया। हर कुंभ में इनके कैंप मुख्य मार्ग पर लगते थे। इस बार तो ऐसे कोने में बिठा दिया कि यजमान यहां तक पहुंच ही नहीं पा रहे। एक चूक में मारी गई कुंभ की कमाई। अब तो बस एकइ आसरा कि किरपा करें गंगा माई। टीका फाना का स्वांग संगम तट पर अलस भोर के कुहासे में एक शख्स को रच-रच कर श्रृंगार करते देख सहज जिज्ञासा हमें उस उस ओर खींच ले जाती हैं। कोई गिरी बाबा हैं सुल्तानपुर के। पता चलता है कि सारा टीका-फाना तीर्थ पुरोहित का स्वांग रचाने के लिए किया जा रहा है। देखते ही देखते धूपम् सुलगा कर बाबा की दुकानदारी भी शुरू हो जाती है। मंत्र के नाम पर त्रिपुंड नाथ बांगड़ू स्वामी पकन्ना पा पिल्लई. जैसा कुछ अगड़म-बगड़म और दक्षिणा जेब में। हां यह भी एक कुंभ है।
एक कंबल का दान- और. बेचारी चमेलिया का दर्द। मेले में घूमने निकलेंगे तो किसी न किसी मोड़ पर चमेलिया और उसका कुनबा जरूर फरियाद करता मिल जाएगा। इन बेचारों का पूरा कुंभ एक कंबल की आस पर टिका हुआ है। जिस दिन इन गरीबों के कंधों पर एक कंबल पड़ जाएगा। मैं समझता हूं सिर्फ इनके जैसों का ही नहीं सबका कुंभ सफल हो जाएगा।
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