गुपचुप बन रही आंदोलन की रणनीति
अविरल-निर्मल गंगा के संकल्प को साकार करने की कवायद तेज हो गई है। कोशिश है, गंगा आंदोलन को धार देने की। अयोध्या आंदोलन की तर्ज पर एक ऐसी धार, जो केंद्र सरकार की चूलें हिला दें।
वाराणसी। अविरल-निर्मल गंगा के संकल्प को साकार करने की कवायद तेज हो गई है। कोशिश है, गंगा आंदोलन को धार देने की। अयोध्या आंदोलन की तर्ज पर एक ऐसी धार, जो केंद्र सरकार की चूलें हिला दें। यह मुहिम अब शनै:शनै: परवान भी चढ़ने लगा है। मुहिम को मूर्तरूप देने में जुटी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी के नेता यह कत्तई नहीं चाहते कि आंदोलन का कोई राजनीतिक निहितार्थ निकाला जाय। शायद यही कारण रहा कि अपनी मुहिम को दिशा देने काशी आयीं उमा ने बार-बार यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि वे गंगा आंदोलन को किसी भी सूरत में राजनीति से नहीं जोड़ना चाहतीं।
काशी में उमा दिनभर सक्त्रिय रहीं। इस दौरान उन्होंने सर्किट हाउस व भाजपा के गुलाब बाग क्षेत्रीय कार्यालय में अलग-अलग बैठकें कीं। इन दोनों बैठकों में गंगा आंदोलन को धारदार बनाने के मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई। यह तय किया गया कि एक ऐसी समिति का गठन किया जाय, जिसका स्वरूप पूरी तरह गैर राजनीतिक हो। इस समिति में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी व विश्व हिन्दू परिषद के उन पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को शामिल किया जाय, जो नि:स्वार्थ भाव से आंदोलन में अपनी सक्त्रिय सहभागिता सुनिश्चित कर सके। यह भी तय किया गया कि समिति अविरल-निर्मल गंगा का लक्ष्य हासिल होने तक गुपचुप ढंग से अपनी रणनीति तय करें। समिति के गठन के बाद उमा स्वयं प्रत्येक सदस्य को दायित्व सौंपेंगी। इस समिति के गठन की कवायद शुरू हो गई है। उधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय संघ सह कार्यवाह डॉ.कृष्ण गोपाल ने भी बैठक कर आंदोलन की दिशा तय के लिए रणनीति पर विचार किया। फिलहाल संघ में आंदोलन में सक्त्रिय भूमिका के लिए गंभीरता से मंथन का दौर जारी है।
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