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बुंदेलखण्ड में नवरात्र का रतजगा बंद के कगार पर

तोहि माता बुलावे हिंगलाल, लाड़ले भैरव का..। यह कुछ ऐसे बुंदेली देवी गीत हैं, जिनको गाकर ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्ग चैत्र मास की नवरात्र का रतजगा किया करते थे।

By Edited By: Published: Sat, 24 Mar 2012 11:22 AM (IST)Updated: Sat, 24 Mar 2012 11:22 AM (IST)
बुंदेलखण्ड में नवरात्र का रतजगा बंद के कगार पर

बांदा। तोहि माता बुलावे हिंगलाल, लाड़ले भैरव का..। यह कुछ ऐसे बुंदेली देवी गीत हैं, जिनको गाकर ग्रामीण क्षेत्र के बुजुर्ग चैत्र मास की नवरात्र का रतजगा किया करते थे। देवी मां की चौरी बुंदेलों की पहचान हुआ करती थी लेकिन अब लोग पीढि़यों पुरानी परंपरा से तौबा करते जा रहे हैं और नवरात्र का रतजगा बंद होने की कगार पर पहुंच गया है।

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डेढ़ दशक पहले चैत्र मास की नवरात्र में बुंदेलखण्ड के हर गांव में विराजमान ग्राम देवी-देवताओं की चौरी या मन्दिर में देवालय सज जाया करते थे और अगरबत्ती, हवन, धूप और नारियल की धूनी की सुगंध से वातावरण महकने लगता था। कहीं मरही माता तो कहीं दुर्गा भवानी का जयघोष गूंजने लगता था।

देवी की चौरी में ढोलक, झांझ व मजीरे की धुन पर गांवों के बुजुर्ग विभिन्न तर्जों के बुंदेली देवी गीतों का गायन और लोहे की सांगों का जांबाजी से प्रदर्शन कर पूरी रात रतजगा कर बिता दिया करते थे। बुंदेली भाषा में इन देवी गीतों को उमाह कहा जाता है। जहां किसान इसे नए संवत्सर [साल] के स्वागत का बुंदेली तरीका मानते थे, वहीं नवरात्र के नौ दिन को देवियों के दिन मान कर शादी-सम्बंधों को अंतिम रूप देने का भी रिवाज था। लेकिन, अब गांवों में यह बहुत कम देखने को मिलता है।

बुंदेलखण्ड के गांवों में भैरव बाबा, जोगनी माता, लोकी दाई, पचनेरे बाबा, अलमा बाबा, काली दाई, बरियार चौरा, भुइयां रानी, काल भैरव, भैरव सेजवार जैसे तमाम देवस्थान आज भी मौजूद हैं, जहां नवरात्र में ग्रामीण एकत्र होकर देवी गीतों के सहारे रतजगा किया करते थे। कुछ लोगों का मानना है कि इन स्थानों में रात को इकट्ठा होना जान जोखिम में डालना है, तो कुछ का कहना है कि आधुनिकता की अंधीदौड़ में पुरानी परम्पराएं भूलाई जा रही हैं।

बांदा जनपद के नरैनी क्षेत्र के राजापुरवा गांव के बुजुर्ग बक्कू का कहना है कि खेर के ग्राम देवता अलमा बाबा के स्थान में पहले मन्नत पूरी होने पर लोग जवारा बोया करते थे और रात भर ग्रामीण उमाह यानी देवी गीतों के सहारे रतजगा किया करते थे, अब एक-दूसरे पर भरोसा नहीं रह गया। कई घटनाएं घट चुकी हैं।

तेन्दुरा गांव में भैरव बाबा चौरी का पुजारी रामखेलावन प्रजापति बताते हैं कि पिता के जमाने में आधे गांव के लोग नवरात्र में यहां जमा हुआ करते थे, अब परिवार के लोग हर साल जवारा उगा कर पुजाई करते हैं। मेनका गांधी की संस्था पीपुल फॉर एनीमल से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार का कहना है कि नवरात्र के अवसर पर उत्सव मनाना तो अच्छी बात है पर अंधविश्वास में आकर देवी-देवताओं में पशुओं की बलि देना बहुत बुरा है। नवरात्र में मन्नत पूरी होने के बहाने हजारों बेजुबां बकरों की बलि चढ़ा दी जाती है। सेना में सूबेदार रहे इंदल सिंह का मानना है कि आधुनिकता की आंधी में पुरानी परम्पराएं विलुप्त होती जा रही हैं।

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