मां स्वरूपा हैं गंगा सभी करें रक्षा
जीवनदायिनी गंगा, मोक्षदायिनी गंगा, भारतीय संस्कृति की पहचान गंगा, भगीरथ के हजारों वर्ष तप के पश्चात देवलोक से मृत्युलोक में शिव की जटाओं से हो गंगोत्री से चलकर गंगासागर तक पहुंचने वाली गंगा जन-जन के लिए मां स्वरूपा हैं।
जीवनदायिनी गंगा, मोक्षदायिनी गंगा, भारतीय संस्कृति की पहचान गंगा, भगीरथ के हजारों वर्ष तप के पश्चात देवलोक से मृत्युलोक में शिव की जटाओं से हो गंगोत्री से चलकर गंगासागर तक पहुंचने वाली गंगा जन-जन के लिए मां स्वरूपा हैं। जन्म देने वाली मां के अतिरिक्त भारतीय जनमानस में यदि किसी को मां का दर्जा प्राप्त हैं तो वह है पृथ्वी, गौ एवं गंगा। राजा भगीरथ के तप से प्रभावित होकर देवलोक से प्रबल वेग से गंगा पृथ्वी की ओर चल पड़ीं। शिव ने अपनी जटाओं में इन्हें रोका और एक धारा के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होने दिया।
राजा भगीरथ के तप का उद्देश्य पवित्र और व्यापक था। भगीरथ का उद्देश्य था कि पतित पावनी गंगा जब पृथ्वी पर आएंगी और जिन क्षेत्रों से गुजरेंगी वह क्षेत्र हरा-भरा हो जाएगा और सबको को मोक्ष मिलेगा। गंगा ऐसी मोक्षदायिनी एवं पतित पावनी हुई कि लोग इनके किनारे मृत शरीर का दाह-संस्कार कर राख इसमें प्रवाहित करने लगे।
गंगाजल की महत्ता इतनी बढ़ी कि मरने से पूर्व गंगाजल पिलाने की मान्यता प्रचलित हो गई। इसके पीछे यह भाव कि मोक्ष मिल जाएगा। आज गंगा की हालत दुर्दशाग्रस्त हो गई है। इनकी दुर्दशा के लिए हम सब जिम्मेदार हैं। अपना मलमूत्र, कचरा आदि गंगा में डाल रहे हैं। कल-कारखानों का कचरा भी गंगा में ही जा रहा है। गंगा में अन्य नदियां भी मिलती हैं। हरिद्वार के बाद गंगा में प्रदूषण ज्यादा बढ़ा है। कानपुर और उसके बाद के शहरों में गंगा की दुर्दशा बदतर हुई है। गंगा की अविरलता को बांध बनाकर रोका गया है। अगर गंगा के अविरल प्रवाह को नैसर्गिक रूप नहीं दिया गया और प्रदूषण इसी तरह बना रहा तो एक दिन यह भी सूख जाएंगी। केवल साधु-संत ही नहीं सभी को मिलकर गंगा के अविरल प्रवाह और निर्मल जल के लिए मिलकर कदम उठाना होगा।
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