छिड़ी बहस. कुंभ पहले या ज्योतिष
वेद अनादि है तो उसका नेत्र माना जाने वाला ज्योतिष अनादि कैसे नहीं। अमृत मंथन पहले हुआ या पहले की गई ग्रह नक्षत्रों की गणना। इस धरा पर कुंभ पहले आया अथवा ज्योतिष का प्रथम हुआ आगमन। इस तरह का एक उलझन भरा सवाल पूरे कुंभ क्षेत्र में तिरता हुआ बहस की नई जमीन तैयार कर रहा है। इस दिशा में यहां मौजूद विद्वानों के अलग-अलग मत हैं किन्तु अधिकतर का यही मानना है कि ज्योतिष पहले बाद में कुंभ। जि
कुंभनगर। वेद अनादि है तो उसका नेत्र माना जाने वाला ज्योतिष अनादि कैसे नहीं। अमृत मंथन पहले हुआ या पहले की गई ग्रह नक्षत्रों की गणना। इस धरा पर कुंभ पहले आया अथवा ज्योतिष का प्रथम हुआ आगमन। इस तरह का एक उलझन भरा सवाल पूरे कुंभ क्षेत्र में तिरता हुआ बहस की नई जमीन तैयार कर रहा है। इस दिशा में यहां मौजूद विद्वानों के अलग-अलग मत हैं किन्तु अधिकतर का यही मानना है कि ज्योतिष पहले बाद में कुंभ। जिज्ञासा का अपना अलग तर्क होता है। यदि विलोम है तो अनुलोम की भी कहीं न कहीं वजह जरूर होगी। ज्योतिष शास्त्र के उद्भट विद्वान विनय झा(वाराणसी)का मानना है कि कुंभ पहले आया। इसलिए कि अमृत मंथन पहले हुआ। वे अपनी बात को थोड़ा और सहज करते हैं-सृष्टि के आरंभ में अमृत मंथन हुआ जबकि ज्योतिष के सूर्य सिद्धांत का पता सतयुग के अंत में चलता है। ज्योतिष के जितने भी सिद्धांत हैं उनमें सर्वाधिक प्राचीन सूर्य सिद्धांत ही है। इस तरह हम देखते हैं कि अमृत मंथन की घटना पहले होती है अब यह अलग बात है गणना बाद में की गई हो। वहीं श्री झा यह भी कहते हैं कि वेद व ज्योतिष का मूल सिद्धांत तो सृष्टि से पहले का है किंतु मानव लोक में यह सभी सतयुग के बाद के हैं।
कुंभ क्षेत्र में ज्योतिष विद्या की अलख जगाते नक्षत्रों के गणनाकार पं. रत्नशंकर (बिहार)का भी यही मानना है कि कुंभ का अस्तित्व प्रथमत: हुआ बाद में ज्योतिष विद्या विकसित हुई। अमृतमंथन का हवाला देते हुए ज्योतिष को, वे प्रथम आगमन नहीं मानते। किंतु काली बाबा तो सीधे खारिज करते हैं। इनका कहना है कि ऐसा कहां संभव है कि कुंभ पहले आया हो। काली बाबा तंत्र ज्योतिष के विद्वान हैं। मूलत: ये केरल के रहने वाले हैं। इनका असली नाम वेणु गोपाल है। काली बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं और बीस वर्षो से रांची में वास कर रहे हैं। वे कहते हैं कुंभ की तारीख गणना ज्योतिष से ही तो हमें पता चलती है।
ज्योतिष शास्त्र के विद्वान पं. रामनरेश त्रिपाठी का कहना है कुंभ पहले आया तो यह बताया किसने कि अमुक समय पर कुंभ है। बिल्कल नहीं कुंभ बाद में आया। ज्योतिष का आगमन अनादि है। वे कहते हैं कुंभ का इतना विशाल मेला ज्योतिष की ही घोषणा का फल है किंतु ज्योतिष को छोड़ दुनिया भर की चीजें यहां हो रही हैं। ज्योतिष पर किसी का ध्यान नहीं है। ज्योतिष दरअसल कुंभ के माता पिता हैं। सूर्य, जल नक्षत्र सभी पहले आए किन्तु गणना तो ज्योतिष ने ही की। इसलिए ज्योतिष पहले, कुंभ बाद में।
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