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शिव का हर रूप मनोहर

शिव के अ‌र्द्धनारीश्वर रूप में देव संस्कृति का दर्शन जीवंत हो उठता है। ईश्वर के इस साक्षात शरीर का सिर से लेकर पैर तक आधा भाग शिव का और आधा पार्वती का होता है।

By Edited By: Published: Thu, 26 Jul 2012 03:22 PM (IST)Updated: Thu, 26 Jul 2012 03:22 PM (IST)
शिव का हर रूप मनोहर

अ‌र्द्धनारीश्वर : शिव के अ‌र्द्धनारीश्वर रूप में देव संस्कृति का दर्शन जीवंत हो उठता है। ईश्वर के इस साक्षात शरीर का सिर से लेकर पैर तक आधा भाग शिव का और आधा पार्वती का होता है। यह प्रतीक इस बात को स्पष्ट करता है कि नारी और पुरुष एक ही आत्मा हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार, अ‌र्द्धनारीश्वर केवल इस बात का प्रतीक नहींहै कि नारी और नर जब तक अलग हैं, तब तक दोनों अधूरे हैं, बल्कि इस बात का भी द्योतक है जिसमें नारीत्व अर्थात संवेदना नहीं है, वह पुरुष अधूरा है। जिस नारी में पुरुषत्व अर्थात अन्याय के विरुद्ध लड़ने का साहस नहीं है, वह भी अपूर्ण है।

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शिवलिंग :

शिवलिंग वस्तुत: प्रकाश स्वरूप परमात्मा के प्रतीक ज्योति का ही मूर्तिमान स्वरूप है। ज्योतिर्रि्लग शब्द इसका प्रमाण है। प्रारंभ में उपासना स्थलों पर अनवरत जलते हुए दीप रखने का प्रावधान था, लेकिन इस दीये का संरक्षण कतई आसान नहींथा। इसके चलते दीप को मूर्तिमान स्वरूप दिया गया, जिसका नाम बाद में ज्योतिर्रि्लग पड़ गया। देश के विभिन्न कोनों में स्थापित बारह ज्योतिर्रि्लग आज भी श्रद्धा के विराट केंद्र हैं। पुराणों में शिवलिंग से जुड़ी अनेक कथाओं का प्रतीकात्मक वर्णन है, जिनके पीछे दार्शनिक सत्य छिपे हुए हैं।

नटराज : शिव के नृत्य करते रूप को नटराज कहते हैं। शिव का यह नृत्य प्रलय का प्रतीक माना जाता है। जब अधर्म अपने चरम पर होता है और कोई उपाय नहीं बचता है, तब शिव को तांडव नृत्य के लिए विवश होना पड़ता है। विनाश के इस रूप में ही सृजन का भाव भी छिपा रहता है। रामायण एवं महाभारत के युद्ध के बिना कहां नई व्यवस्था आरंभ हो सकती थी? शैवागमों का कथन है कि शिव एक सौ एक मुद्राओं में नृत्य करते हैं। हर मुद्रा में शिव के चेहरे पर विभिन्न भाव आते हैं, जिनका कला में भी सुंदर प्रयोग किया गया है।

(साभार : देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार)

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