सच्ची सुंदरता उसके गुणों से पहचानी जाती
महान दार्शनिक सुकरात हर सुबह घर से निकलने के पहले आईने के सामने खड़े होकर खुद को देर तक निहारते रहते। एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा, तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
महान दार्शनिक सुकरात हर सुबह घर से निकलने के पहले आईने के सामने खड़े होकर खुद को देर तक निहारते रहते। एक दिन उनके एक शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा, तो उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। सुकरात समझ गए। वे शिष्य से बोले, तुम जरूर यह सोचकर मुस्करा रहे हो कि यह कुरूप व्यक्ति आईने में खुद को इतने ध्यान से क्यों देख रहा है? पकड़े जाने से शिष्य थोड़ा झेंप गया। वह माफी मांगता, इसके पहले ही सुकरात ने बताना शुरू कर दिया, आईने में हर दिन सबसे पहले अपनी कुरूपता को देखता हूं, ताकि उसके प्रति सजग हो सकूं। इससे मुझे ऐसा जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिलती है, जिससे मेरे सद्गुण इतने निखरें कि वे मेरी बदसूरती पर भारी पड़ जाएं। शिष्य झेंपता हुआ बोला - तो क्या सुंदर व्यक्तियों को आईने में अपनी छवि नहीं निहारनी चाहिए? सुकरात ने कहा - बिल्कुल निहारनी चाहिए, लेकिन वे स्वयं को आईने में देखें, तो यह अनुभव करें कि उनके गुण भी उतने ही सुंदर हों, जितना उनका शरीर है।
कथा-मर्म : मनुष्य की सच्ची सुंदरता उसके गुणों से पहचानी जाती है।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर