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छोटी है दुख की छाया

चंद्रग्रहण की खगोलीय घटना से हमें संदेश मिलता है कि दुख की छाया भले ही हमें कष्ट दे रही हो, लेकिन उसकी आयु ज्यादा नहीं होती। पूर्ण चंद्रग्रहण [10 दिसंबर] पर विशेष..

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2011 01:20 AM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2011 01:20 AM (IST)
छोटी है दुख की छाया

चंद्रग्रहण की खगोलीय घटना से हमें संदेश मिलता है कि दुख की छाया भले ही हमें कष्ट दे रही हो, लेकिन उसकी आयु ज्यादा नहीं होती। पूर्ण चंद्रग्रहण [10 दिसंबर] पर विशेष..

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चंद्रमा का धर्म है अपनी शीतल रश्मियों की वर्षा करना, लेकिन कभी-कभी उस पर भी ग्रहण लग जाता है। चंद्रमा को ज्योतिष में मन का प्रतीक माना गया है। देखा जाए, तो संकट भी मन से ही शुरू होते हैं। मन पर संकट की छाया पड़ने लगती है। चंद्रग्रहण की घटना हमें यह संकेत देती है कि हमें अपने ऊपर आए संकटों से घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि संकटों की उम्र ज्यादा नहीं होती। जल्द ही वे समाप्त हो जाते हैं और फिर व्यक्ति अपने कर्म में प्रवृत्त हो जाता है। बस जरूरत है मन को मजबूत करने की। मान्यता है कि चंद्र ग्रहण के समय साधना करने से मन को बल की प्राप्ति होती है।

खगोल विज्ञान में माना जाता है कि चंद्रग्रहण में चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है। इस बीच में चंद्रमा पृथ्वी की छाया से गुजरता है, जिससे वह कांतिहीन हो जाता है। जबकि ज्योतिष में बहुत पहले से ही चंद्रग्रहण की गणनाएं होती रही हैं। ज्योतिष में चंद्रमा को राहु के ग्रसने का मतलब ही चंद्रमा का छाया के प्रभाव में आना है, क्योंकि ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह माना जाता है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने चंद्रग्रहण के समय प्रकृति में होने वाले परिवर्तन तथा प्राणियों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का भी विश्लेषण कर पाया है कि ग्रहणकाल में उत्पन्न प्राकृतिक ऊर्जा से मन की शक्तियों को जगाया जा सकता है।

चंद्रमा का मानव-मन के साथ गहरा संबंध देखकर ही भारतीय ज्योतिष में चंद्रमा से ही जन्मराशि के निर्धारण का सिद्धांत बना। मनुष्य अपने सारे फैसले मन के द्वारा ही करता है और यह मन चंद्रमा से नियंत्रित होता है। अतएव भारतीय ज्योतिष में चंद्र-राशि को प्रधानता दिया जाना व्यक्ति के मनोविज्ञान को समझने की ही कवायद है।

विज्ञान की दृष्टि से चंद्रमा और सूर्य के मध्य जब पृथ्वी होती है और ये तीनों एक सीध में आ जाते हैं, तब पृथ्वी की छाया [राहु] चंद्र पर पड़ने से चंद्रग्रहण दिखाई देता है। यह विशिष्ट स्थिति केवल पूर्णिमा को ही बन सकती है।

पौराणिक ग्रंथों में ग्रहण के दिखाई देने की अवधि [दृश्यकाल] को साधना का पर्वकाल कहा गया है। मान्यता है कि इस समय की गई साधना का फल कई गुना मिलता है। इसीलिए ज्योतिषीय ग्रंथों में इसे आध्यात्मिक महापर्व कहा जाता है। आज के युग में लोग जल्दी ही सब कुछ पा लेना चाहते हैं। ज्योतिष में मान्यता है कि ग्रहण के समय की गई साधना अल्पकाल में आत्मिक और मानसिक बल प्रदान करती है। फिर जीवन में आए संकटों से लड़ना हमें आ जाता है और हम अपने जीवन पर लगे ग्रहण को दूर कर देते हैं।

शनिवार 10 दिसंबर को मार्गशीर्ष [आग्रहायण] मास की पूर्णिमा में सूर्यास्त के उपरांत संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में चंद्रग्रहण देखा जा सकेगा। इस ग्रहण की प्रक्रिया की शुरुआत [ग्रहण का स्पर्श] शनिवार 10 दिसंबर को सायंकाल 6.15 बजे होगा। इसके बाद चंद्रबिंब पर ग्रहण का ग्रास बढ़ता जाएगा और सायं 7.36 से रात्रि 8.28 बजे तक संपूर्ण चंद्रमा पृथ्वी की छाया से ढक जाएगा। ज्योतिष में यह स्थिति खग्रास कहलाती है। रात्रि 8.28 बजे के पश्चात् ग्रहण का ग्रास घटना शुरू होगा और रात्रि 9.48 बजे ग्रहण का समापन [मोक्ष] हो जाएगा। इस प्रकार यह चंद्रग्रहण सायं 6.15 से रात्रि 9.48 तक, 3 घंटा 33 मिनट की अवधि में दिखाई देगा। धार्मिक दृष्टि इस चंद्रग्रहण का सूतक [वेध] शनिवार 10 दिसंबर को प्रात: 9.15 बजे से शुरू हो जाएगा और मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे। यह सूतक रात्रि 9.48 बजे ग्रहण की समाप्ति के साथ ही खत्म होगा। [डॉ. अतुल टण्डन]

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