पश्चाताप से बचें
जीवन के सफर में पश्चाताप या अफसोस करना दो भावनाएं ऐसी दु:खदायी हैं जिसका असर बाहर से दिखाई नहीं देता, लेकिन अंदर अजीब सी घुटना महसूस होती है या अपना मन अंदर ही अंदर दु:खी होता है।
जीवन के सफर में पश्चाताप या अफसोस करना दो भावनाएं ऐसी दु:खदायी हैं जिसका असर बाहर से दिखाई नहीं देता, लेकिन अंदर अजीब सी घुटना महसूस होती है या अपना मन अंदर ही अंदर दु:खी होता है। अतीत की कुछ घटनाओं का हम परिवर्तन करना चाहते हैं। जो अवसर हमने खो दिए हैं उसे फिर से प्राप्त करना चाहते हैं। हम कई बार सोचते हैं। ऐसा न होकर ऐसा होता तो। ऐसी अनेक बातें सोच-सोचकर अफसोस या पश्चाताप करते रहते हैं। अफसोस करना, समय, संकल्प और शक्ति को व्यर्थ बर्बाद करना है। एक तो गलती करते वक्त अपना समय, अपनी शक्ति को व्यर्थ बर्बाद किया, फिर उसका चिंतन या पश्चाताप करने में अपना अमूल्य समय व शक्ति भी बर्बाद किया। पश्चाताप की भावना में बुद्धि का सोचना बंद हो जाता है। याद रखना कि निराश होकर कभी भी हम अतीत की बीती हुई बातों को परिवर्तित नहीं कर सकते। जीवन में पीछे मुड़कर देखने के बजाय भविष्य में आने वाले समय की ओर देखें। पश्चाताप या अफसोस की भावनाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए अतीत की घटनाओं को एक अनुभव के रूप में स्वीकार करें। उस बात से हमें क्या सीख मिली, इसका चिंतन करें। तभी आप अगली बार गलती नहीं करेंगे।
बीती हुई बात को पूर्ण विराम देकर आगे के लिए सावधानी रखनी है। शांति से बैठकर भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न हो, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए इसे सोचें। पश्चाताप की भावना को मन से निकाल दें और जीवन में आगे बढ़ते रहें। कुछ पल के लिए स्वयं को आरामदायक स्थिति में स्थित करें और अपने मन से पश्चाताप की पीड़ा को निकाल दें। इतना भी स्वयं के साथ लापरवाह नहीं बनें कि वह गलती दोबारा करें। गिरे हुए दूध पर रोने से कोई फायदा नहीं। अगर आप गिरे हुए दूध की कीमत को जान नहीं सके तो आगे इससे अधिक दूध गिरा सकने की संभावनाएं हो सकती हैं। अत: हर दिन सोने से पहले अंतरमन के दर्पण में स्वयं को देखें और जीवन में कुछ अच्छा लक्ष्य बनाकर यथार्थ में जीवन का आनंद लें।
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