हिंद की चादर गुरु तेग बहादुर
ावम गुरु श्री तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था। इस बलिदान के कारण ही उन्हें हिंद की चादर-गुरु तेग बहादुर कहकर स्मरण किया जाता है।
नवम गुरु श्री तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राणों का उत्सर्ग कर दिया था। इस बलिदान के कारण ही उन्हें हिंद की चादर-गुरु तेग बहादुर कहकर स्मरण किया जाता है। त्याग की प्रतिमूर्ति गुरु तेगबहादुर का नाम पहले त्यागमल ही था, परंतु युद्धों में तेग (तलवार) से बहादुरी दिखाने के कारण छठे गुरु एवं पिता हरिगोविंद साहिब ने उन्हें तेग बहादुर नाम दिया। पिता के ज्योति जोत समाने (महाप्रयाण) के बाद वे बकाला गांव जाकर 21 वर्ष तक साधनारत रहे। भाई मक्खन शाह लुबाणा ने गुरुजी को खोजा एवं सिखों का नेतृत्व करने के लिए राजी किया।
गुरु तेग बहादुर जी समरसता को सहज जीवन जीने का सबसे सशक्त आधार स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार आशा, तृष्णा, काम, क्रोध को त्यागकर ऐसा जीवन जीना चाहिए, जिसमें मान-अपमान, निंदा-स्तुति, हर्ष-शोक, मित्रता-शत्रुता आदि भावों को एक समान रूप से स्वीकार करने का भाव उपस्थित हो।
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