छोटकी महारानी मइया
गुदड़ी रोड में सड़क के किनारे मां अम्बे महारानी स्थान मंदिर। यहां छोटकी महारानी मइया न केवल मुरादें पूरी करती हैं, बल्कि जोडिय़ां भी मिलाती हैं। यदि किसी लड़का-लड़की की शादी नहीं हो रही है तो यहां आकर चुनरी चढ़ाने व चढ़ी चुनरी ले जाने वाली लड़कियों की शादी तय है।
सीतामढ़ी। गुदड़ी रोड में सड़क के किनारे मां अम्बे महारानी स्थान मंदिर। यहां छोटकी महारानी मइया न केवल मुरादें पूरी करती हैं, बल्कि जोडिय़ां भी मिलाती हैं। यदि किसी लड़का-लड़की की शादी नहीं हो रही है तो यहां आकर चुनरी चढ़ाने व चढ़ी चुनरी ले जाने वाली लड़कियों की शादी तय है। इस मंदिर का इतिहास दो सौ साल पुराना है। नीम का विशाल पेड़, देवी की आठ पिंडी तथा मां अम्बे का वैष्णवी स्वरूप आस्था का प्रतीक है।
नेपाल के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली व राज स्थान से लोग मन्नतें उतारने यहां आते हैं। सप्ताह में कम से कम चार पांच मुंडन, पूजा व अन्य आयोजन होते हैं। लगन में कम से कम 30 जोड़े परिणय सूत्र में बंधते हैं। करीब सवा दो सौ वर्ष पूर्व घने जंगल में एक नीम का पेड़ था। बताते हैं कि यहां महारानी माता का निवास था। कालांतर में यह स्थान महारानी स्थान के नाम से विख्यात हुआ। इस स्थान की देखरेख वर्तमान माली अशर्फी भगत के पूर्वजों ने की।
दिनोंदिन इस स्थान का महत्व बढ़ता गया, जो भी यहां आया उसकी मुराद पूरी हुई। बाद में एक विधवा ने अपनी जमीन दी और यहां छोटा सा स्थान बना। बाद में व्यवसायी अशोक कुमार चौधरी ने भगवती की प्रेरणा से मंदिर बनाने की ठानी। उन्होंने खुद की सारी सम्पत्ति मंदिर बनाने में लगा दी और दिल्ली जा बसे। 20 वर्ष पूर्व जनसहयोग से यहां मां की प्रतिमा स्थापित की गई। माली के अलावा पुजारी रीषिमंत मिश्र
भगवती की पूजा व भक्ति में लगे हैं। श्री मिश्रा रोजाना 10-15 चुनरी लोगों को नि:शुल्क बांटते हैं। संभवत: यह जिले का एक मात्र स्थान है, जहां माता व महरानी मइया एक साथ हैं।
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