बाबा शिवदास के प्रति अटूट विश्वास
सोनीपत के गांव सांदल खुर्द में स्थित नीमली में बाबा शिवदास ने तप किया था। श्रद्धालुओं के उनके प्रति अटूट विश्वास के यहां अनेक प्रमाण सहज ही देखने को मिलते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि बाबा शिवदास उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
सोनीपत के गांव सांदल खुर्द की चौपाल में लगे एक शिलालेख के अनुसार यह गांव वर्ष 1630 में अस्तित्व में आया। इसके उत्तर-पश्चिम में एक धार्मिक स्थल है जो नीमली नाम से प्रसिद्ध है और मनोवांछित फलदायक स्थली के रूप में यहां पूजा-अर्चना की जाती है। यहां चंदन का झुंड होने के कारण यहां के दो गांवों का नाम सांदल खुर्द और सांदल कलां रखा गया। इन गांवों के बुजुर्ग ये कहते आए हैं कि गांव सांदल खुर्द में नीमली के बीड़े [धार्मिक स्थल को बीड़े के नाम से पुकारा जाता है] में दशकों पहले बाबा शिवदास तपस्या में लीन रहते थे। उस बीड़े में एक शेर भी रहता था। बाबा शिवदास उस शेर से कभी भयभीत नहीं हुए और दिन-रात उसके साथ रहते थे। इस कारण ग्रामीण बाबा शिवदास को असाधारण मानते थे और उनके प्रति अगाध आस्था रखने लगे।
बाबा ग्रामीणों को अपनी मधुर वाणी व सिद्धी का प्रसाद बांटते थे। वे भागवत पुराण, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण के पाठ एवं हवन आदि से गांव में खुशहाली का संचार करते थे। आसपास से ही नहीं बल्कि दूर-दराज से भी श्रद्धालु बाबा शिवदास के पास नीमली में आते थे। श्रद्धालु नीमली में आकर बाबा से आशीर्वाद रूप में प्रसाद ग्रहण करके जाते थे। श्रद्धालुओं का बाबा शिवदास के प्रति आज भी अटूट विश्वास है।
नीमली के बारे में गांव सांदल खुर्द के बुजुर्गो का कहना है कि जींद के तत्कालीन महाराज जसवंत सिंह की कोई संतान नहीं थी। उन्हें हर जगह से निराशा ही मिली। एक दिन उनके एक मंत्री ने बताया कि गांव सांदल खुर्द में नीमली एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहां एक महान संत शिवदास तपस्या करते हैं। उनके आशीर्वाद और प्रसाद से आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाएगी। इतना सुनते ही महाराज जसवंत सिंह अपनी रानी को लेकर सांदल खुर्द पहुंचे। बाबा शिवदास ने उन्हें प्रसाद और आशीर्वाद देकर पुत्र रत्न का वरदान दिया। ठीक एक वर्ष बाद महाराज जसवंत सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जींद के महाराज अपने परिवार और रिश्तेदारों को लेकर पवित्र धाम नीमली पहुंचे। उन्होंने खुश होकर एक तालाब, एक प्याऊ के लिए कुआं, भोजनालय और एक रिहायशी मकान का निर्माण करवाया जो आज भी अस्तित्व में हैं। इन्हें देख महाराज जसवंत सिंह के बाबा शिवदास के प्रति अटूट विश्वास का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा शिवदास आज भी उनके दिलों में जिंदा हैं। वे पलभर में हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। बाबा शिवदास ने गांव में अभद्र गानों, नटों के खेल, दोघड़ में [दो मटके एक साथ] औरत के गान और बैलों की लाद पर गांव में प्रतिबंध लगाने को कहा था। उन्होंने कहा था जब तक ये प्रतिबंध रहेगा इस गांव में कोई भी प्राकृतिक आपदा नहीं आएगी। ग्रामीण शुरू से उनकी इन बातों का निर्वाह करते आ रहे हैं। ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से नीमली में बाबा शिवदास के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया है। यहां बाबा शिवदास के अलावा बाबा थांबूदास व बाबा दयाचंददास की समाधियां भी बनाई गई हैं। नीमली धाम में फलदार वृक्ष भी लगे हैं। गांव के युवाओं ने नीमली धाम की सुरक्षा के लिए कमेटी का निर्माण किया है जो समय-समय पर नीमली धाम की साज-सज्जा का ध्यान रखती है। वर्तमान
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