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गंगा की निर्मलता ही सृष्टि का प्राणतत्व

जब परमेश्वर ने अपने स्वरूप के अनुसार पृथ्वी की सृष्टि। नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। इसके साथ परमेश्वर ने कहा कि समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी पर रेंगने वाले जंतुओं पर अधिकार रखें।

By Edited By: Published: Fri, 25 Jan 2013 02:59 PM (IST)Updated: Fri, 25 Jan 2013 02:59 PM (IST)
गंगा की निर्मलता ही सृष्टि का प्राणतत्व

जब परमेश्वर ने अपने स्वरूप के अनुसार पृथ्वी की सृष्टि। नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। इसके साथ परमेश्वर ने कहा कि समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और घरेलू पशुओं और सारी पृथ्वी पर रेंगने वाले जंतुओं पर अधिकार रखें। जब तक यह पृथ्वी प्रकृति से परिपूर्ण है मानव जाति फलती-फूलती रहेगी।

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गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि-

जड़ चेतन, जग, जीव, जति सकल राम मय जानि।

ऋग्वेद में उल्लेखित है-

ऊं द्यौ: शन्तिरन्तरिक्ष ग्वड्. शन्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्ति विश्वेदेवा: शान्ति:।

ब्रंाशान्ति: सर्व ग्वड्. शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरोधि:।

ऊं शान्ति! शान्ति: शान्ति:!!!!

करके किसी शुभ कार्य का प्रारम्भ करते हैं।

गीता में भी पर्यावरण संरक्षण के लिए निर्देश दिया है-

लोकसंग्रहमेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि तथा गुरूनानक देव ने भी गुरू ग्रंथ साहब के माध्यम से निर्देश दिया है-

मनुष्य जिसकी सृष्टि नहीं कर सकता उन्हें बर्बाद करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। बाइबिल में भी कहा गया है कि हरित औषधि जैसी सभी वस्तुओं को मैने तुम्हे प्रदान किया है। ऋग्वेद में उल्लेखित है कि यदि तुम जीवन फल और आनंद का सैकड़ों और हजारों वर्ष तक उपभोग करना चाहते हो तो सुनियोजित ढंग से वृक्षारोपण करो।

गौतम बुद्ध ने भी कहा है कि-

वृक्ष असीमित दयालुता और उदारता वाला विचित्र पौधा है

वृक्ष कबहु न फल बखै।

नदी न संचय नीर।

परमार्थ के कारणे साधु धरा शरीर।

वृक्षों का भी लकड़हारों से बचाने हेतु देवी देवताओं के आदृश्य शक्ति का नाम जैसे अश्वयथ में विष्णु लक्ष्मी, पूर्वज पूजा वट ब्रंा, विष्णु श्रीहरि, कुबेर, तुलसी, विष्णु लक्ष्मी पूर्वज पूजा, सोम चंद्रमा, बेल महेश्वर शिव आत्माएं, अशोक बुद्ध इन्द्र, अमलाकी लक्ष्मी कार्तिक, उर्वरक, धार्मिक उपासना, कदम कृष्ण पूर्वज, महुआ सेमल आंख नारी केल, उर्वरक धार्मिक उपासना, फिंग कर्पूर शिओरा, शिज, तमाल। गंगा को मां तथा गाय को माता का रूप माना गया है। वर्षा पुराण में स्वर्ग जाने हेतु पीपल, नीम आदि वृक्षों को लगाने की बात कही गयी है। मत्स्य पुराण में पृथ्वी की सफाई पानी देने और वृक्षारोपण के लिये उल्लेखित किया गया है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ पर्यावरण में जीने का अधिकार होगा।

मां गंगा के तट पर रसूलाबाद घाट पर बाइलोजिकल डिमाण्ड आक्सीजन की मात्रा 17 है। पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार 4 है। जो वास्तव में विपरीत है। बीओडी और सीओडी की जांच प्रतिदिन कराया जाना आवश्यक है। जल जीवों के लिये। गिरते हुए भूजल स्तर को अगर नहीं रोका जा सका तो पृथ्वी एवं पानी के मध्य अत्यधिक दूरी जाने से और बहुमंजली इमारतों के बन जाने से पृथ्वी में फटन की स्थिति बन जायेगी और हल्के से भूकंप के झटके में नगर तबाह हो जायेंगे।

समुद्र के तट के किनारे बसे महानगरों को भी समुद्र के सतह पर फैली बर्फ की पर्त के सिकुड़न आने पर और फैलाव होने पर सुनामी जैसी लहरें बाम्बे, कलकत्ता आदि नगरों को खतरा तेजी से उत्पन्न हो जायेगा। कुंभ मेला 2012-13 में करोड़ों श्रद्धालु क्षेत्र में स्नान ध्यान तथा अन्य उपयोगी प्रवचन साधु संत महात्माओं धर्माचार्यो शंकराचार्यो अखाड़ों समाजसेवी संस्थाओं एवं कल्पवासियों से सादर अनुरोध किया जाता है कि मां त्रिवेणी के तट पर यह संकल्प लें कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतिवर्ष एक पौधे का वृक्षारोपण करेगा।

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