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उड़ें हंस की तरह

हंसों की उड़ान हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। वह हमें बताती है कि कैसे एकता और सहयोग से हम कठिन से कठिन काम को सरल बना सकते हैं..

By Edited By: Published: Fri, 20 Apr 2012 05:31 PM (IST)Updated: Fri, 20 Apr 2012 05:31 PM (IST)
उड़ें हंस की तरह

आपने कभी हंसों को आकाश में उड़ते हुए देखा है? हंसों को जब कभी एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना होता है, तो वे हमेशा क्रमबद्ध तरीके से, अंग्रेजी वर्ण माला के अक्षर वी के आकार में ही झुंड बनाकर उड़ान भरते हैं। क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया कि वे ऐसा क्यों करते हैं? वैज्ञानिकों के अनुसार, जब भी कभी कोई हंस उड़ता है तथा अपने पंखों को फड़फड़ाता है, तो उसके ठीक पीछे उड़ने वाले हंस को उड़ान भरने में आसानी हो जाती है। इस प्रकार जब हंसों का झुंड वी के आकार में उड़ान भरता है, तो सभी हंसों को अपने आगे वाले हंस के पंखों की फड़फड़ाहट से उत्पन्न ऊर्जा से शक्ति मिलती है। उनकी उड़ान भरने की क्षमता, एकल उड़ान के मुकाबले 70 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। वी आकार में उड़ने से उन्हें हवा के प्रतिरोधात्मक बहाव को चीरकर आगे बढ़ने में भी सहायता मिलती है। इस कारगर तकनीक का इस्तेमाल कर ये हंस सैकड़ों और हजारों मीलों का सफर बिना थके पूरा कर लेते हैं।

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उड़ान के दौरान यदि कोई हंस किसी वजह से अपने झुंड से बिछुड़ने लगता है, तो अचानक उसे झुंड के प्रति खिंचाव और प्रतिरोध महसूस होता है, जिससे उसे अकेले उड़ने में कठिनाई होती है। अत: वह हंस पुन: झुंड में शामिल हो जाता है, जिससे उसे आगे वाले हंस की उड़ान शक्ति की ऊर्जा का लाभ मिल सके। दल का मुखिया वी आकार में सबसे आगे होता है। मुखिया थक जाता है, तो वह पंख समेट कर पीछे आ जाता है तथा बारी-बारी से सभी हंस उसकी जगह लेते जाते हैं, जिससे किसी एक हंस को अधिक थकावट न हो।

सहयोग और सह-अस्तित्व की स्वस्थ भावना का ऐसा जीवंत उदाहरण, शायद इंसानों में भी मुश्किल से देखने को मिलता है। यही नहीं, हंसों की यह अनोखी उड़ान अन्य कई तथ्य समेटे हुए है, जो हम सबके लिए न केवल आश्चर्यजनक है, वरन् प्रेरणादायी भी। उड़ान के दौरान, झुंड के पीछे उड़ने वाले हंस आगे वाले हंसों को रफ्तार बढ़ाने के लिए लगातार बीच-बीच में बोल कर प्रेरित करते रहते हैं। आगे वाले हंसों को इससे प्रोत्साहन मिलता है तथा वे अपनी गति बनाए रखते हैं। उड़ान के बीच में यदि कोई हंस बीमार पड़ जाए अथवा घायल हो जाए, तो वह झुंड से अलग होकर बाहर गिरने लगता है। ऐसी स्थिति में दो हंस झुंड छोड़कर उसके साथ गिरने लग जाते हैं, जिससे बीमार हंस की समय पर सहायता की जा सके। ये दोनों साथी हंस तब तक उसके साथ रहते हैं, जब तक कि वह स्वस्थ न हो जाए। फिर वे किसी अन्य झुंड में शामिल हो जाते हैं।

हंसों की यह उड़ान इंसानों को नसीहत देती है कि कैसे सहयोग और एकता से कठिन से कठिन कार्य को सरल बनाया जा सकता है। यह उड़ान हमें जीवन जीने की कला भी सिखाती है। आज के विकट समय में जब चारों तरफ स्वार्थ, एकाकीपन, असहयोग एवं धोखाधड़ी का बोलबाला है, ऐसे में हंसों की उड़ान हमें याद दिलाती है कि हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं तथा सेवा, परस्पर सहयोग एवं सुदृढ़ दल-भावना से ही हम बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। समाज तथा परिवार में परस्पर सहयोग का वातावरण ही नई पीढ़ी को एक बेहतर इंसान बनाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। ऐसी उच्च भावना से ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

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