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समभाव से सब झुकाएं शीश

हरि का प्रदेश हरियाणा अपनी कला, संस्कृति, वेशभूषा और खानपान के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के निवासी धार्मिक मनोवृत्ति के हैं। यही कारण है कि यहां असंख्य धार्मिक स्थल बने हुए हैं।

By Edited By: Published: Wed, 04 Apr 2012 02:25 PM (IST)Updated: Wed, 04 Apr 2012 02:25 PM (IST)
समभाव से सब झुकाएं शीश

हरि का प्रदेश हरियाणा अपनी कला, संस्कृति, वेशभूषा और खानपान के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के निवासी धार्मिक मनोवृत्ति के हैं। यही कारण है कि यहां असंख्य धार्मिक स्थल बने हुए हैं। हरियाणा में ऐसे भी अनेक धार्मिक स्थल हैं जो सांप्रदायिक सद्भाव तथा आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। हिसार के गांव नंगथला में स्थित बाबा सुलतान पीर का मंदिर एकता बनाए रखने के लिए प्रेरणा देता प्रतीत होता है।

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यहां हर धर्म के श्रद्धालु समभाव से शीश झुकाते हैं। हिसार-सिरसा सड़कमार्ग पर बसे गांव अग्रोहा से लगभग सात किलोमीटर दूर स्थित गांव नंगथला में बने बाबा सुलतान पीर के मंदिर में हर धर्म के लोग माथा टेकने आते हैं। बाबा सुलतान पीर वर्तमान पाकिस्तान के प्रसिद्ध शहर मुलतान के पास निगाह नामक जगह के रहने वाले थे। गांव नंगथला में बाबा सुलतान पीर के साथ-साथ उनके सेवक जति भैरव की समाधि भी बनी हुई है। हर साल चैत्र और आश्विन मास में शुक्ल पक्ष के प्रत्येक गुरुवार को यहां मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शीश झुकाने आते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धानुसार सवा पांच किलो से सवा मण तक का रोट लगाया जाता है। श्रद्धालु बाबा सुलतान पीर की समाधि पर नारियल, गुड़ और चद्दर चढ़ाते हैं।

गांव नंगथला में इस धार्मिक स्थल के निर्माण के पीछे एक रोचक कहानी है। विक्रम संवत् 1618 में फेरु नाम का एक व्यक्ति गांव नंगथला में रहता था। एक बार उसे कुष्ठ रोग हो गया जिसका फेरु ने बहुत इलाज करवाया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। उसकी बीमारी बढ़ती गई और वह निराश होकर घर पर बैठ गया। उसके घर एक दिन शौकत अली खान नामक व्यक्ति आया। वह बाबा सुलतान पीर का भक्त था। उसने बताया कि यदि फेरु पाकिस्तान में निगाह (मुलतान) नामक स्थान पर जाकर बाबा सुलतान पीर की दरगाह पर तीन बार माथा टेके तो उसकी यह बीमारी ठीक हो जाएगी। स्वस्थ होने की ललक ने फेरु को निगाह जाने के लिए तैयार कर दिया। उसे निगाह पहुंचने में 14 दिन लगे। वहां जाकर वह स्नान करके सवा पांच सेर गुड़, पान, गुलाब व चद्दर लेकर बाबा सुलतान पीर की दरगाह पर पहुंचा। उसने देखा कि वहां बकरे की बली दी जा रही थी, इसलिए वह मायूस हो गया। तभी एक बाबा फेरु का हाथ पकड़कर उसे दरगाह पर ले गए। दरगाह पर फेरु द्वारा लाया प्रसाद चढ़ाकर उस बाबा ने स्वयं भी ग्रहण किया। फेरु रात को किसी के घर रुका और अगले दिन फिर माथा टेका। तीसरी बार फेरु फिर से निगाह गया और माथा टेका। रात को वह एक ब्राह्मण के घर में सोया। उसे सपने में बाबा सुलतान पीर के दर्शन हुए। सपने में उसे दर्श हुआ कि बाबा सुलतान पीर उसे कह रहे थे कि वह स्वयं उसके साथ ईटों के रूप में नंगथला गांव चलेंगे। निगाह से नंगथला लौटते समय ही फेरु एकदम स्वस्थ हो गया। नंगथला निवासी फेरु को तंदरुस्त देखकर हक्के-बक्के रह गए। उनकी भी बाबा सुलतान पीर के प्रति आस्था अटूट हो गई और गांव नंगथला में उनका मंदिर बनवाया।

वर्तमान में गांव नंगथला में बाबा सुलतान पीर का भव्य मंदिर बना है। इसके पास ही तालाब है जिसमें श्रद्धालु पूजा के बाद मिट्टी निकालते हैं। यहां पर एक धर्मशाला भी बनी है। मंदिर के विकास कार्य हेतु समिति बनी हुई है जो दान से सारे कार्य करवाती है। समिति का प्रधान रमेश शर्मा को बनाया गया है। फेरु के वंशज अब यहां भक्तों को सर्पदंश, पीलिया व दर्द मुक्ति का निशुल्क झाड़ा लगाते हैं। श्रद्धालु चैत्र व आसोज के शुक्ल पक्ष के गुरुवार को मेले में जरूर आते हैं। शादी के बाद वर-वधु यहां धोक लगाने अवश्य पहुंचते हैं। रामचंद्र यहां पिराही का कार्य करते हैं। उनके परिवार की वह चौथी पीढ़ी से हैं।

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