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कर्म की चार अवस्था: आचार्य धर्मपाल

मनुष्य अपने कर्म का फल ही जीवन पर्यत भोगता है। कर्म की चार अवस्थाएं हैं। यह बात देवी मंदिर में पुरुषोत्तम मास की कथा सुनाते हुए आचार्य धर्मपाल ने कही।

By Edited By: Published: Mon, 03 Sep 2012 10:35 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2012 10:35 AM (IST)
कर्म की चार अवस्था: आचार्य धर्मपाल

पानीपत। मनुष्य अपने कर्म का फल ही जीवन पर्यत भोगता है। कर्म की चार अवस्थाएं हैं। यह बात देवी मंदिर में पुरुषोत्तम मास की कथा सुनाते हुए आचार्य धर्मपाल ने कही।

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उन्होंने कहा कि पहली अवस्था वो है जब कोई कर्म नहीं करता, निकम्मा व आलसी रहता है। मोटरगाड़ी जब गैरेज में खड़ी रहती है, धूल से भरी रहती है। उसका इंजन नहीं चलता न ही पहिए। दूसरी अवस्था वह है जब इंजन चल रहा है, तेल फूंक रहा है। गाड़ी गियर में नहीं है। मतलब मन में कामना तो बहुत है, इच्छा है, संकल्प है लेकिन वे कर्म में परिवर्तित नहीं हो पाए। तीसरी अवस्था है जब इंजन और पहिए दोनों चल रहे हैं। मतलब कामना व कर्म दोनों। चौथी अवस्था वह, जब ढलान मार्ग है। इंजन बंद कर दिया जाता है, फिर भी गाड़ी चल रही है। कामना नहीं है, लेकिन कर्म हो रहा है। ज्ञानी की यही चौथी अवस्था होती है। उसने अपने जीवन को इच्छा व संकल्प से रहित कर दिया है। लोक कल्याण ही वो ढलान है जिस पर उसके कर्म की गाड़ी नि:स्वार्थ चलती रहती है। यज्ञशाला में यज्ञ के यजमान कृष्णलाल रहे।

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