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सर्वनाश कर देता है बड़प्पन का अभिमान

सुख चाहते हो तो जीवन में सिर्फ लौकिक विद्या, धन व भोग को ही महत्व न दें। समग्रता देखने से ही जीवन सुखी होगा। मनुष्य को भगवान की भक्ति व तत्व चिंतन की बड़ी आवश्यकता है। इसकी पूर्ति सत्संग ही कर सकता है।

By Edited By: Published: Fri, 16 Mar 2012 01:19 PM (IST)Updated: Fri, 16 Mar 2012 01:19 PM (IST)
सर्वनाश कर देता है बड़प्पन का अभिमान

देहरादून। सुख चाहते हो तो जीवन में सिर्फ लौकिक विद्या, धन व भोग को ही महत्व न दें। समग्रता देखने से ही जीवन सुखी होगा। मनुष्य को भगवान की भक्ति व तत्व चिंतन की बड़ी आवश्यकता है। इसकी पूर्ति सत्संग ही कर सकता है। चिन्मय मिशन सभागार में आद्यगुरु शंकराचार्य रचित ग्रंथ भजगोविंदम् पर प्रवचन करते हुए मिशन के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख स्वामी तेजोमयानंद ने यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि रोग एवं शोकग्रस्त होने पर भी मनुष्य में बड़प्पन का अभिमान रहता है। विवेकी वह है जो भगवान की भक्ति करके अपना परलोक सुधार लेता है। धन व धन कमाने की शक्ति रहने तक ही परिवार प्रेम करता है। पत्‍‌नी का प्रेम भी प्राण रहने तक ही है।

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इसलिए धन चला जाए तो भगवान का भजन करो। सांध्यकालीन सत्र में गीता दर्शन पर प्रवचन करते हुए स्वामी तेजोमयानंद ने कहा कि गीता में भगवान मन की शुद्धि के लिए कर्मयोग का उपदेश करते हैं। कर्मयोग का अर्थ कई घंटों तक बहुत दक्षता के साथ कार्य करना नहीं है, बल्कि शास्त्र के अनुसार केवल कर्तव्य निहित कर्म करना है। कर्म कामना, वासना व स्वार्थ की पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि प्रभु की प्रसन्नता के लिए होना चाहिए। उन्होंने कहा कि कर्मयोग से शुद्ध मन में वैराग्य, भगवद् प्रेम व जिज्ञासा आती है और राग-द्वेष दूर हो जाते हैं। आनंद पाने में ही कर्मयोगी की स्वतंत्रता निहित है।

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