आध्यात्मिक ज्ञान से होगा लाभ
मानव उत्थान सेवा समिति के शिविर में चल रहे सद्भावना सम्मेलन में भक्तों की भारी भीड़ जुटी। मंगलवार को अंतिम दिन सतपाल महाराज ने कहा अध्यात्म की शक्ति से ही मानव का सर्वागीण विकास संभव है।
कुंभनगर। मानव उत्थान सेवा समिति के शिविर में चल रहे सद्भावना सम्मेलन में भक्तों की भारी भीड़ जुटी। मंगलवार को अंतिम दिन सतपाल महाराज ने कहा अध्यात्म की शक्ति से ही मानव का सर्वागीण विकास संभव है। इससे मानव को आंतरिक ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे उसका एवं समाज का भला होता है। उन्होंने कहा कि जब-जब भारत में आध्यात्मिक शक्ति का उत्थान हुआ, भारत विश्र्र्व में सिरमौर बना, परंतु इसकी अनदेखी करने पर वह नीचे गया है। कहा कि सनातन धर्म में जो आध्यात्मिक शक्ति है वह कहीं नहीं मिल सकती।
कुसंगत से रहें दूर-
पाप का बीज छोटा होता है किंतु धीर-धीरे वह बड़ा वृक्ष बन जाता है। धर्मशील, वीरव्रती, गुणों के खान राजा दशरथ के घर में कुंसग रूपी मंथरा का प्रवेश हुआ और पूरी अयोध्या शोक ग्रस्त हो गई। अत: कुसंगत से हमको सतत सावधान रहने की आवश्यकता है। सेक्टर पांच स्थित दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा वासुदेवानंद सरस्वती के शिविर में आयोजित श्रीरामकथा में संत विजय कौशल महाराज ने यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने केवट प्रसंग का अत्यन्त मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि दीनहीन, असमर्थ, अक्षम के ऊपर भगवान की करुणा, कृपा अवश्य होती है। ऐसे लोगों का मन अत्यंत निर्मल व पवित्र होता है।
अहंकार सबसे बड़ा दुश्मन-
धर्म नगरी में मानव को सच्चे हृदय से आना चाहिए। यहां आकर किसी स्वार्थ में नहीं बल्कि जनकल्याण के लिए काम करना चाहिए। गृहस्थ संत देवप्रभाकर शास्त्री दद्दाजी ने अपने शिविर में प्रवचन के दौरान यह बातें कही। उन्होंने कहा कि अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है।
यह जिसे अपने गिरफ्त में लेता है, उसका समूल नाश हो जाता है, इसलिए हर मानव को अहंकार से दूर रहना चाहिए। उन्होंने प्रभु कृपा पर प्रकाश डालते हुए राजा बलि की संकल्पित दान प्रवृत्ति व भिखारी रूप परमात्मा के बामन अवतार की कथा सुनाते हुए बताया कि भिक्षावृत्ति नहीं करना चाहिए।
प्रयाग सबसे बड़ा तीर्थ-
प्रयाग से बढ़कर तीनों लोकों में कोई तीर्थ नही है। कुंभपर्व में जितना दान, पुंय, जप, ध्यान किया जाता है उसका फल अवश्य मिलता है। प्रयाग ही वह पावन धरती है जहां करोड़ों देवी-देवता निवास करते हैं। सेक्टर छह स्थित लक्ष्य प्रेरणा डिवाइन फाउंडेशन के शिविर में स्वामी प्रेरणामूर्ति ने यह विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सत्यतीर्थ, क्षमातीर्थ, इंद्रिय-निग्रहतीर्थ, सर्वभूनदया तीर्थ, नियमतीर्थ, धैर्यतीर्थ, ज्ञान तीर्थ, अंहिसा तीर्थ आदि सब मानसतीर्थ हैं। केवल शरीर से जल में डुबकी लगाना ही स्नान नहीं कहलाता, जिसने मन और इंद्रियों के संयम में स्नान किया वही सफल होता है।
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